बुद्धि के ठेकेदार | Buddhi Ke Thekedar

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Buddhi Ke Thekedar by वासुदेव गोस्वामी - Vasudev Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीन प्रतोक साहत्य-स गात-क्त्ञा विदा न न्‌ নন দুল নানা ল্‌ साहित्य-सेवियों में इस इोछ का 1 है दूर वे इसके गृह तत्वों से रहे हे। अचोन ना प्रधानता रहने के कारण ग्रत्यक विपय का विह्नचनन छु्दनवद्धन्सापा “ता रहा है। सामान्यतः छेद में चार चगण सख्या पशुपदा केवुल्य होने से छन प्रताक में मानना असेंयत नहो कदर एक ऐसा वृषभ बतल्ाया गया है, जिसके तोन पर आर चा से वैदिक कल्पना मे छुके अपनी पाठशाला के खेज में को रेस (तीन ऐर की दौड़ ) का आसास জিলা, क्योकि चार নানা युगश्क्षघारी दो मस्तक सहज दी समके जा सकते है ! किन्तु य सादित्य, संगीत और कला से विद्दीन व्यक्ति का केवल ऐसा पशु बसाया गया है, जिसके सीग-पेंछ न हो | इसका अभिप्राय यह तो नहीं + (और न यह निकालना ही चाहिये ) कि इनसे परिपुर्ण व्यक्ति युच्छ- विषाण से युक्त समक्ता जाय ? आपने कई विद्वानों कः विहंगम दृष्टि डालते हुए एवं 'सिंदावलोकन' करतें हुए. देखा होगा | यदि आप उन्हें 'धुरंधरः कहें, तो वे प्रसन्न ही दोंगे | महप वेदव्यास जी ने भी श्रीन्दूसागवत के खंडों का स्कंध की ह्य संज्ञा दी है, जिसकी इृढता और सौन्दर्य के लिए वृषभ प्रसिद्ध है | दिल और दिमाग की श्रौसत है गला, इसी से बह इन दानों के बीच में बनाया भया है। तमी हृदव के उदयारों को दिमागी बाना




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