दुश्मन | Dushman

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मक्सिम गोर्की - maxim gorki

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मधू जी - Madhu Jee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भिखाईल : मगर सब से पहले हम कारखाने के मालिक हैं! हर छुट्टी के दिन मज़दूर एक दूसरे की पिटाई करते हैं, करते रहें ,- हमारा इससे क्‍या वास्ता? इन मज़दूरों को अच्छे तौर-तरीब्ों, अच्छे सलीक़े सिखाने का काम फिलहाल तो तुम्हें छोड़ देना होगा। इस वक्‍त उनके प्रतिनिधि दप्तर में वैठे हुए ह-वे दिच्कोव को निकाल बाहर करने की मांग करेगे) तुम्हारा क्या करने का इरादा ই? जसार: क्या तुम यह समझते हो किं दिच्कोव के विना हमारा काम ही न चल सकेगा ? निकोलाई (र्खे दंग से): मेरे स्याल मे यह्‌ सवाल सिफं दिच्कोव का नहीं, असूल का है। লিজাইল : बिल्कुल! सवाल यह है कि कारखाने का मालिक कौन है-तुम, में या मज़दूर ? जखार ( भौचक्का) : मे यह समझता हूँ! मगर... লিজাইল : अगर हम इस बार झुक गये, तो कल वे किस वात को माँग करेंगे, भगवान्‌ ही जानता है। ये बड़े ढीठ और ज़िद्दी लोग हैं। पिछले छः: महीनों से इतवार के दिन जो सकल लगाये जा रहे हैं और दूसरे काम हो रहे हैं, अब वे अपने रंग दिखाने लगे है-मुझे तो वे भूखे भेड़ियों की तरह घ्रते हैं, इधर-उधर कुछ इश्तिहार भी दिखाई दे रहे हैं... इन से समाजवाद की बू श्राती है। पोलीनाः इस दूर-दराज़ जगह में समाजवाद की चर्चा तो बिल्कुल बेतुकी और अटपटी लग रही है .. सुनकर हसी प्राती है,- क्यों, ठीक है न? सिखाईल : सचमुच ? श्रीमती पोलीना दिमत्रीयेव्ना, बच्चे जब तक बच्चे होते हैं, उनकी बातों से रस मिलता है, मज़ा श्राता है। मगर धीरे धीरे वे बड़े होते रहते हैं और फिर एक दिन अच्छे-खासे शैतान के चर्खे बनकर सामने आ खड़े होते हैँ... १८




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