श्रीगौतमचरित्र | Shreegautamacharitra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अधिकार | [६
कमलोंके दर्शन कर वहुत ही प्रसन्न होते थे || ३७ ॥ वहांके
धर्मात्मा पुरुष मांगनेवालोंके लिये उनकी इच्छासे भी अधिक
दान देते थे और इसप्रकार चिरकालठसे धनका सँग्नह करने-
वारे कुवेरको भी रञ्जित करते थे ॥ ३८ ॥ वहांके तरुण
पुरुष अपनी अपनी ख््ियोंकों छुख पहुँचा रहे थे ओर वे
स्रियां भी अपने हाव, भाव, विलछास आदिके द्वारा देवांगना-
ओंको भी छज्जित कर रदी थीं ॥३९॥ उत्त नगरके परोंकी
पेक्तियां बड़ी ही ऊंची थीं, बड़ी ही सुंदर थीं और बहुत
टी अच्छी जान पडती थीं तथा पे अपनी सफेदीकी दुदर
शोभसे चदरमंडको भी हंस रही थीं ॥४०॥ वहांके वाजा-
रकी पंक्तियां बहुत ही सुंदर थीं, उनकी दीदारें माणियोंसे
सुशोभित थीं भौर सोनार, धान्य आदि अनेक पदा्थोका
लेन देन उनमें हो रहा था॥ ४१॥ তল नगस््ं श्रेणिक
नामके राजा राज्य करते थे। उनका हृदय सम्यग्द्शनसे
अत्यंत हृदू था और नमस्कार करते हुए समस्त सामंतोंक
मुकुटसे उनके चरणकमल ददीप्यपान हो रहे थे ॥ ४२ ॥
हृचेतप्तः ॥ ६७ ॥ धर्मिष्ठा यत्र सदाने ददतेऽरथीच्छयाधिकम् |
रजयेत इव श्रीदे चिरसवितवित्तकम् ॥ ३८ ॥ तरुणा यत्र कुति
कामिनी सुखत्तमताम् | हावभावविलाप्तायेस्ताडितामरसुन्दरीम् ॥३९॥
गृही राते यत्र प्रोत्तमा सुन्दराकृतिः | चेद्रवित्रे हसंतीव रवेत-
सुधांसुगोमया ॥ ४० ॥ यडइरानयो मांति मणिरजितमित्तयः ।
सुबर्णवख्रधान्यादिक्रियाणकप्रमंडिताः ॥० १॥ नमिताशेषसामंतमुकु-
2दीपितपत्कन: । भूपोऽमृच्छरूणिकस्तत्र सम्यक्त्वटढचित्तफः ॥४२॥
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