हिन्दी भाषा और साहित्य में ग्वालियर क्षेत्र का योगदान | Hindi Bhasha Aur Sahitya Men Gwaliyar Kshetra Ka Yogadan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
453
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११
में आए थे । वैजू बावरा समवतः गुजरात से आकर सन्देरी ठहदरता हुआ खालियर
आ पहुंचा था। चन्देरी मे बह “क्ला -नाम्ती आराध्या के सम्पर्क मे याबरा हो गया था ।
सूरदास, गोविन्दस्वामी ओर तानमेन, ग्वालियर की संस्कृति की हो उपज ये । सही
माबुदी अप्टद्वाप गौर वल्लम मत मे पहुँची-दस्यू, महमूद कर्ण-मंगीत नॉयक-यहा
थे । मधुकरशाह-वुन्देला, प्रवीणराय, हरीराम व्याम ओरछा, तानसन, आमकरण, आदि
के पद, सूर की पद रचना के पू्वाधार के रुपमे प्राप्त थे ।
हिन्दी का पोषण सस्कृत, पालि ओर अपभ्र श के स्तन््य से हुआ है। उसकी अभि-
व्यजना शक्ति में, तु्कों के माध्यम से प्राप्त पारसी साहित्य से भी प्रखरता आई थी।
तत्कालीन खालियर को यह सुयोग प्राप्त हुआ था हि विछते सेपे के जैन अपभ्रश
कवियों ने अपनी समस्त प्रशस्त रचताएँ यहा लिखी और लगभग লুন সায় জন লস ঘা
साहित्य का यहा पुनरुद्धार क्या । यह स्मरणीय है कि रइपू अपभ्रद्ा का अतिम
प्रतिष्ठित कवि है। रइबू को राज्याश्रथ भद्दे ही प्राप्त न हो वह डूरेस्द्रतिह औौर
बीत्िसिंह तोमर राज्य काल पे अनेक ग्रयो पी सृष्टि बर सदा था नयचन्द्र मूरि का
सस्करत मे हम्मौर महाकाव्य वौरम देव-राज्यमे रचा गया धा! पद्मनाभ, नयचन्द्र
सूरि, रइधू, यज्.कीति, गुणकीति आदि विद्वातो के माध्यम से ग्वालियर की पद्िचम
भारत की जैत विद्वत्ता और मृदुल कवित्व की परम्पराएं उपलब्ध हुई थी ।
इस प्रकार ग्वालियर मे पन्द्रहवी-मोलइवी शताब्दी ई० में एक विशाल साम्द्रेतिक
क्रान्ति हुई जिसमे हिन्दी भाषा-माहित्य के सकालियरी-योगदान की पारा, हिन्दी के
महास्तागर में विलीन होकर अपनी उत्ताल तरयों से हिन्दी महोदवि को तरगाबित
कर उठी ।
प्रस्तुत शोथ प्रवस्ध में अप्रक्ाशित पाण्डुनिषियो के अध्ययन के लिए आचार्य
द्विवेदी हरिहर निवास-प्रस्यागार, विद्यामदिर, मुरार, स्ालियर, सुविधापूर्व॑क उपलब्ध
रहा । लेखक समय-समय पर, व्यस्त ध्षणों मे आचार्य द्विवेदी का वात्मह्य पूर्ण स्तेहा-
मिक्त मार्गदर्शत पा सका | प० बनमाली सरिद ने फोटो निमि दस्भनिविह গনি
की ली | स्व० प० विजयगोविन्दजी ने ब्रह्म वत में शोध प्रवत्थ को देखा था।
विद्वान निर्देशक डॉ० महेन्द्र भटनागर ने लेखक को अत्यन्त सहयोग देकर अनुग्रहीत
নিয়া)
आदरणीय विद्वान डा० शिवमगलमिंह सुमन, उच्जेन, डं मुशीराम शर्मा,
कानपुर, डा० राजेइवर प्रसाद चतुवेंदी, डॉ० पीतमर्निह तोमर, आगरा, डॉ० कस््तूर
चन्द कासलोवाल जयपुर, डॉ७ रामचरण महेन्द्र, कोटा (राज०),ढों० राजकुमारी कौन,
जयपुर से भी लेखक अनुग्रहीत हुआ 1
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