साम्यवाद का बिगुल | Samyavad Ka Bigul
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
चपरासीके भी । बच्चे शायद चपरासीके कुछ ज्यादा ही होंगे ।
मेहनत भी वह कम नहीं करता। हम मानते हैं कि सबको जरूरत
एकसी नहीं होती, पर दो आदमीकी जरूरतोंमें २५०००) और
१०) का फक नहीं हो सकता । समाजवादी चाहते हैं कि हम
जिस स्वराज्यके लिए अपना सवस्व न्यौछावर कर रहे हैं वह
भारतकी इस कोटानुकोटि जनताका स्वराज्य हो जिसमें यह
लोग आदमीकी तरह रह सकं ।
कांग्रेस और गरीब
इसके उत्तरमें कुछ लोग यह कहते हैं कि कांग्रेस तो खुद ही
गरीबोंका स्वराज्य चाहती है। महात्माजी तथा अन्य नेताओंने
बार-बार ऐसा कहा है कि हम मजदूरों और कृषकोंका स्वराज्य
चाहते हैं । यदि हमारे बड़े नेताओंकी बस्तुतः यही इच्छा है तो
वे हमको आशीवोद देंगे और हमको जल्दी सफलता होगी; पर
सच तो यह है कि इस समय कांग्रेसपर रुपयेवालोंका बड़ा
जोर है। वह जब चाहते हैं तब आन्दोलन छिड़ जाता है, जब
चाहते हैं. तब रुक जाता है। उनके कुकर्मोंको जानते हुए भी कांग्रेस
उनकी निन्दा नहीं कर सकती । स्वराज्यके नामपर लोगोंको
लड़ानेकी कोशिश तो की जाती है पर यह साफ साफ नहीं बत-
लाया जाता कि स्वराज्य हो जानेपर इन गरीबोंकों क्या मिलेगा ।
आजतक इनको अंग्रेज ओर हिन्दुस्तानी मिलकर चूसेंगे। पर, इस
स्व॒राज्यसे बेचारे गरीबको क्या सुख मिलेगा ? वह उसके लिये
क्यों मरे कटे ! हम समाजवादी स्पष्ट रूपसे बतला देते हैं कि
स्वराज्यमें क्या होगा,मिल-मालिकों,पूँजी-पतियों,सरकारी अहलकारों
ओर जमोन्दारोंका बल किस प्रकार खत्म हो जावेगा । जो आदमी
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