अहिंसा की बोलती मीनारे | Ahinsa Ki Bolti Meenaren

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Ahinsa Ki Bolti Meenaren by गणेश मुनि - Ganesh Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मीनारो की माषा अमा के सम्बध म शव तव बहुत बुछ लिखा जा चुका है वतमावम बहुत लिखा जा रहा है, और आने वाता भविष्य नदीन स्थिति परि रिथितियाँ उस सम्ब'घ मे अधिक जिखने को प्रेरित करती रहेंगी। 'अद्विसा/ एक तीन बण का छोटा सा शद है. किन्तु यह विध्णु के तीत चरण से भी अधिक विराट व व्यापक है। मानव जाति ही नहीं कितु समस्त धर-अचर प्राणि जगत हन तीन चरर्णो में समाया हभा है । जहां महिषा है वहा भीवन दै जहां धरिता का समाव है. वहाँ जीवन का अभाव है । जिस टिस इस सृष्टि पर जीव ने दम लिया था उसी टिन अहिसा वो भी जम हुआ था । और णजव तक इस सृध्टि पर अहिसा नाम मा तत्त्व रहेगा जीव का अस्वित्व भी मुरतित रहगा। जन दपन के अनुसार सृष्टि पर प्राणी का अवतरण भनादि दै दसन्निएु वह अटिषा को मी अनादि मानता टै । जवन और अहिंसा का अनारि सम्बन्ध है । अभिप्राय यह है कि थहाँ प्रहिसा हैं वहाँ जीवन है और जहा जीवन है वहा बहिसा है--यह व्याप्ति नित्यन्स ये है । अर्हिना एक विराट शक्ति है 1 जोवन वे विविध पक्षों मे हसके विविध যী मातव अनाटिबाल से करता रहा है। जित परिष्षितिया में जिरा प्रकार के समाधात की आवश्यव॒ता हुई--अहिसा से वह समाधान प्रस्तुत क्या है। जीवन की सरल से सरल एवं कठिन से कठिन हर परित्थिति में अहिसता ने मनुष्य वा साथ तिया है. उसके अस्तित्व शी रक्षा वी है उसे जीवन बी समस्‍या को सुलकाया है और उसके बल्याए का माग प्रशस्त किया है । जिस युग मे एक वबीला दूसरे बबीलो से सड़ता या। एड जाति दूरी जाति के माष थप, युद्ध मौर विग्रह खडे क्ती धी, आय अनाय




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