शिव प्रसाद सिंह और फणीश्वर नाथ रेणु के कथा - साहित्य में आंचलिकता की परिकल्पना | Shiv Prasad Singh Aur Phanishwar Nath Renu Ke Katha - Sahitya Men Aanchalikata Ki Prikalpana

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Shiv Prasad Singh Aur Phanishwar Nath Renu Ke Katha - Sahitya Men Aanchalikata Ki Prikalpana by रमेश कुमार शुक्ल - Ramesh Kumar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[72 का प्रतीक मानकर इस उपन्यास का कथा-क्षेत्र बनाया'*2 इससे स्पष्ट है कि रेणु ने ही सर्वप्रथम आज्वलिक शब्द का प्रयोग किया तथा आज्वलिक कथा-साहित्य का सजन किया। इससे पूर्व इसी भाव-भूमि पर 'देहाती- दुनिया' शिवपूजन सहाय तथा बलचनमा' नागार्जुन ने उपन्यासो की रचना की, परन्तु रेणु ने दी सर्वप्रथम यह नाम दिया। मेरे विचार से यह निश्चित है किरेणु ने 1954 ई० में कथा की पारिभाषिक चेतना कौ अंचल का आधार दिया। अंचल व्यक्ति से बड़ा समाज से छोरा क्षत्र, बीच की कड़ी या मध्यवर्ती कड़ी है जो क्षेत्रीय कथाभूमि का आधार है। इस सम्बन्ध में डॉ. शिव प्रसाद सिंह का कथन ट्रष्टव्य है-- ''आऑँज्चलिकता की प्रवृत्ति स्वातच्योत्तर हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक प्रवृत्ति थी जिसके भीतर भारतीयता को अन्वेषित करने की सूक्ष्म अन्तः धारणा कार्य कर रही धी ।'3 आञ्वलिकता के भीतर निम्नलिखित बिनु मुख्य रूप से अते है 1. अञ्वल क्षेत्र” विशेष से सम्बन्धित है। 2. क्षेत्र व्यक्ति से बड़ा तथा समाज से छोटा होता है। 3, सम्पूर्ण अज्चल ही नायकत्व प्राप्त करता है। 4, आज्वलिकता में वे समस्त सन्दर्भ आते हैं जो किसी विशेष रीति-रिवाज, रहन-सहन व आचरण के अपने भीतर प्रतिबिम्बित करते हैं। वस्तुतः अज्चल' जब्द में स्थानीयता की पहचान एक अनिवार्य शर्त है, जो उसे 2. मैला आँचल- रेणु प्रथम संस्करण 3. आधुनिक परिवेश और नवलेखन - डॉ० शिव प्रसाद सिंह




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