हिंदी विपूवकोश भाग १२ | Hindii Vipoovkosh Bhaag 12

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हिंदी विपूवकोश भाग १२  - Hindii Vipoovkosh Bhaag 12

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नगेन्द्रनाथ बसु - Nagendranath Basu

Add Infomation AboutNagendranath Basu

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
निषिबास-- निधुंधम रह कर भंगंबदंगोताको टौका शिखो थो। उसमें कोने लिखा है, कि निवात महाराष्ट्रदेशके मध्य ५ कोस तक फल कर गोदावरी के समोप चला गया है। उच्च আনাম इस सामको सदहालय वा देवताका भावास बतलाया है। निधिवास ( निवास )के विषयमें भोर भो कई एक देगतनक हानियां प्रचलित हैं। # उनमेंसे केवल एक दमग्त- कह्ानो यहां देते हैं जिसका विषय स्कन्दपुराणके 'महा- शयमाह त्म्यमें लिखा है। यह 'साहात्य्य' बहांके अधि वासियोंके बढ़े भ्ादरकी वस्तु है। मडाशयमादाप्म्यक्त मतरे पुराकालमें तारफांसुर न।मक एक ठेत्य था। वह देत्य ब्रद्माको स्तवसे सन्तुष्ट कर सनके वरके प्रभावसे सवग को चला गया। देव दुलेभ खगमे खानपा कर वह ইন श्रहू(रसे चुर चुर हूं। गया गोर देवताभोंसे प्रति अत्याचार करने लगा यहां तक्ष कि उसने धोरे घोरे देवताओं को खग से भगाना ग्रारग्भ कर दिया । असुरके उत्पाससे देवगण स्थिर न रह सके। वे भ्ननन्‍्धोपाय हो कर ब्रह्माकी गरणमें पह थे । ब्रद्माने उनको रखाके लिये विशुक्रा ससरण किया। स्मरणके साथ हो विशु वहां पहुंच गये | बाद ब्रह्म।से सघ बाते जाग कर विशुने कच्चा कि, 'कात्तिकेय शबद्बरक्े पोरस भोर पावतोओे गर्भ से उत्पन्न दो कर उस देध्यका नाग्रकरेगे।” फिर ब्रद्माने विशुसे पूछा कि; 'कात्ति करके जन्यकाल तक देवगण कहां रहे गे !' इस पर विश बोले कि 'निवास' गामक एक देश है, वहों देवतापोंके रच ने' का स्थान होगा | बहां वच दे त्य उनका कुछ भो भनिष्ठ नहो कर सकता। उन्‍होंने व्वय' मनिवासका जो वण न किया है, वह इस प्रकार है--“विन्ध्य-प्रव तके दक्षिण भागमें योदावरों नहोके दाहिने किनारे पांच कोस तक 'पिर्वत एक तोधथ खान है। गा मह्लप्तयो वरानदो कलकल शब्द करतो हुई बहती है। उस नदीको पूव दिशामें भ्रसाधारण व शवों शक्तिक्ा वास है ।” प्नत्तर देवग़ण ठसो निर्धारित खान पर जा कर रहने लगे | ._ महालयप्ता हात्म्यमें निवासके 'संशालंत' रोर (निधि ঘা বই বীলাম হী লহ परोरं परहको नेहो प्रवरा, क, ४०), 75911, १, 908.8. -पापशरा घोर वश.भामखे ववि त है। समतृक्षमारते व्यासंके १। निकट उन्त मॉप्तोंकी इसे प्रकार व्याख्या को है। व्यासने प्रश्न किया, “सहृषि ! इस पुण्य स्थोगका ताम 'सहालय॑ और “निधिवास' क्यों पढ़ा 'प्रवरा! ओर 'पापहरा' शब्दका व्यवह्षार क्यों किया गया ! एवं লহী- का नाम बरा' होनेका क्या कारण ? यह सब विषय मुझे बतला कर পিই আতর লা सनन्‍्द डे, हछौपया उपे दूर कीजिए ।” इसके उत्तरमें सनत्‌कुमारने कहां थी, “यह स्थान मह्त्‌ ( देवताभो )का भालय है, इस कारण इसकां লাম महझालय' पढ़ां है। जब विशुके पभ्रादेशानुसार देवगण यहां रइनेको राजी हुएं, लव ये अपने भपनो सम्पत्ति ले कर यहां भाए थे। घंनाधिपति कुर्तर भपनों नव॑निति ले कंर यहां रकने लगे और तभोसे वे इसो स्थान पर रहते हैं। ' निधिवास” नास पड़नेका यहो कारण है। प्रवरा नंदोने देवताभो'से प्राथ ना की थो, कि जिससे मैं सुम्तिष्ट विशृद्ध भोर सबो को जोवन- रखिणो हो संकू', वह वर मुझे देनेकी क्पा करे । देव- ताप्रो'ये यह बंर पाकर वह 'प्रबरा' ( भ्रधीत्‌ सुर्मिषटं जलपूर्णा नदो ) मामे प्रसि इदै। 'पापहरा पाप- धोतकारो नदो को झोर 'बरा' स्वास्थ्यकरजलपूर्णा गदो- को कहते हैं। महालयमाहात्य॑में लिखा है, कि पूर्वोक्ष व णवो शज्षि निवासकी अधिष्ठाती देयो है| धाज भो ये निवास रखाकारिणे देवी कइलातो हैं। निवासमें व 'ण्ों- शकह्षिका एक सनोहर मंस्दि है। विष्णुने राइका स'हर करते समय जिंस प्रकारको मृत्ति घारण को थों, वे शवों शज्िकी सूत्ति भो ठोक रसो प्रकारको है | निधोश्वर ( स० पु: ) निधोीनां रेषंरः। कुबर | निधुवन ( स'० क्वोौ० ) नितरां धुवन' इस्तपदादि জাল্দল' यत्र। ঈঘুল। रे नम, कैलि। ३ कम्म | ४ इ सो- हैडा । । निधुवभ--शोषन्दावन-धाममे खित নীঘ वशेष । শ্রীজন্যা ' रांधिका, हन्दा भ्रादि सखियो के सांध यहाँ विहार करते थे। इसका भादि नाम हन्दारण्य वा हन्दाकुच्छ है। सम्भवतः तन्‍ंदा रख गार्ससे हम्दावन नामको उत्पत्ति हुईं है| इस उद्यासमें झृतिम सु चोर पश्नंरागका पेड़ है |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now