भारती | Bharati Bhag-2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2, शहीद बकरी (किसी जीवन मूल्य को सहज और बोधगम्य बनाने के लिए उसे किसी घटना, दृष्टांत या कथा के माध्यम से प्रस्तुत करने की साहित्यिक विधा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। ऐसी रचनाओं को “बोधकथा' कहते हैं। 'शहीद बकरी' ऐसी ही बोधकथा है। प्रस्तुत कथा में कायर बकरियों के माध्यम से लेखक ने यह उजागर किया है कि किस प्रकार भेड़िये जैसे अत्याचारी के आतंक के कारण लोग भय से दुबककर बैठ जाते हैं। वे एकजुट होकर उसका सामना करने का साहस नहीं जुटा पते, किंतु जब युवा बकरी जैसा कोई प्राणी कमजोर होने पर भी साहस करके अत्याचार का मुकाबला करने के लिए आगे आता है तो अत्याचारौ को मुंह की खानी पड़ती है । उस प्रयास मे भले ही अत्याचारी का विरोध करनेवाले को इस कथा की बकरी के समान शहीद होना पडे! साथ ही समाज-हित के लिए किए गए आत्मोत्सर्ग का उपहास करनेवाले तोते ओर समाज-हित के लिए किए गए बलिदान पर गर्वं का अनुभव करनेवाली मैना के संवाद द्वारा इस कथा के संदेश को व्यक्त किया गया हे |) हरे-भरे पहाड पर बकरिर्यो चरने जातीं तो दूसरे-तीसरे रोज़ एक न एक बकरी कम हो जाती। भेड़िये की इस धूर्तता से तंग आकर चरवाहे ने वहाँ बकरियाँ चराना बंद कर दिया और बकरियों ने भी मौत से बचने के लिए बाड़े में कैद रहकर जुगाली करते रहना ही श्रेष्ठ समझा। लेकिन न जाने क्योँ एक युवा नई बकरी को यह बंधन पसंद नहीं आया। अत्याचारी से यों कब तक प्राणों की रक्षा की जा सकेगी? वह पहाड़ से उतर कर किसी रोज़ बाड़े में भी कूद सकता है। शिकारी के भय से मूर्ख शुतुरमुर्ग रेत में गरदन छुपा लेता है। तब क्या शिकारी उसे बख्श देता है? इन्हीं विचारों से ओत-प्रोत वह हसरत भरी नज़रों




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