बिरहवारीशमाधवानलकामकंदला | Birahavarishamadhavanalakamakandala
श्रेणी : साहित्य / Literature

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
53 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ )
(विक्रमादिव्य)केपासजाय प्रणामाकेया और यहां राजाकाम-
सेन॑ ने मेदामल्नको युद्धमें ज़काहुआ सुनि अपने मंत्रीको बि-
क्रमादित्यके पास भेजा और सम्मातिक हेतनिवेदनकरने की आ
ज्ञादे बिदाकिंया मंत्रीकी आयाजान विक्रमादित्य ने आदरपचे-
कृउसका सन्मान करि जर उसका सदेशा सनि (सम्मति)षडे
आनन्द से स्वीकार करमंत्री को बिदादी तदनन्तर मंत्रीवहांसे
बिदाहोकर कामसेनके पास आसम्मति स्वीकार का बृत्तान्तस
नायाजेसको सुनि कामसेन ने विक्रमादित्य के पास आनेकी
तय्यारी की और पहुंचने के पहिलेबिक्रमादित्य ने आगे बढ़कर
मिलाप किया ओर दोनों ढेरमें गाय एक सिहासन पर विराज-
मानहों हुलास संहित बांत्तोकरनेलगे और राजा कामसेन
पनी ढिठाई की क्षमामोंगी जिसके पश्चात कामसेनने माधवा-
नलकोबुला अपने सबक्रीधको त्याग भेंटकी ओर कुशल क्षेम
आपुसमेपृदी फिर कामसेन राजाने बिक्रमादित्य से विनयकी
[के महाराज आपचलकर मेरा भवन पवित्र कीजिये जिसके
पसं नभ्रवचन सुनि षिकरमादित्य माधवानंल सहित मंत्रियों
को लें रेथपर चद् कामावतीको गवन क्या आर वहाँ
पटच भवधनाथके. दशन करि सहस्र गऊ बाह्मणों को
दानदे पुनि वहाँ से चल राजा के भवन में प्रवशकिया ओर रा
जा कामसेन विक्रमादित्य को दरार में लेजाकर प्रीतिपूषेक
सत्कार कर दोनों नरश सिहासन पर विराजमानहुये ओरे प्रीति
सहित वाता दने के पश्चात् कामसेनने कंदला के लालने
क अन्नादा आर तनं ज्याहीं कंदला से राजसभा का सम्पू
एप्रसमग तथां सजा का सदेशा सुनाया च्योँहीं उसके बामांग
फृरकने लगे ओर अपनी अनुचरियोंकों बुलाय राजसभामें
साथ चलने के लिये बोली यह सुनिवे संखियां दोड़ बख्आ-
भृषणले आई ओर कंदला से श्रृंगार करने के लिये कहापरन्तु
उसने प्रीलम:के मिलाप में देर होने के कारण श्ंगार ল ঘা
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