मयूर पंख | Mayur Pankh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
589 KB
कुल पष्ठ :
113
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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परिचय
' किरनों का जाल लेकर, एक ऐसी भोर आई
परिचित, थे अपरिचित से, जब तुम मिले थे हमको
दिन किन्तु पखेरू सा, बस उड़ चला निमिपमें
संध्या के घुंधलकों में, फिर खो चुका हू तुमको
वह् स्वप्न यदि नहीं था, तो सत्य था अधूरा
कितनी अतृप्तियां है, अन्तर की वेदना में
तुम क्यों मयूरपंखी, परिधान में संवर कर
आ आके झिलमिलाती हो मेरी कल्पना में
मदिरा के घूट पीकर मादक वसन्त ऋतु में
जैसे बयार आये अमराइयो के भीतर
तुम भी कुछ ऐसी गति से जीवन परिधि में आये
और छुप गये हो मन की गहराइयों के भीतर -
पहरे सी दे रही ह प्राणी पे तेरी स्मृति
जधरों से बामुरौ की संगति न षट जाये
अंकित हुई है जिस पर अनमोल छवि तुम्हारी
वह भरी भवना का दरपन न टूट जाये
९
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