धुलाई रंगाई विज्ञान | Dhulai-rangai Vigyan

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Dhulai-rangai Vigyan by शिवचरण पाठक शास्त्री -Shivcharan Pathak Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय ९५ ५८ ५१.८८ १“ ^ ^“ ^ ५ ५“ ५८५८ ४८६९2 वि फा सबसे पहले यह नाम छेना आवश्यक है कि वस्त्र धोनेके- लिये कैसा पानी उपयोगी हो कना है, वह कितने प्रकारका है! तथा -छसमे कौन २ से गुण होने चाये । जलके प्रकार (भेद) वैसे तो जलको खट्टा, मीठा, कड़वा, खारा, ठीख्ला तथा कसला आदिके भेदसे छः प्रकारका माना गया है, किन्तु यहाँ वस्त्र घोनेकी ऋष्टिसे दसे केवर तीन प्रकारका ही मानते हैं । १ अद्ध जल २ टुः जल ३ खाराया कठोर अछ शुद्ध जलकी पहचान तथा उसके गुण लिस जरम किसी प्रकारफी गन्ध, खारापन तथा भारीपन न हो भौर जिसके पीनेसे जल्दी २ प्यास न छती षो, घस जल्को শু অভ कट्द सकते हैं | शुद्ध जलमें सबसे उत्तम गुण मधुरता है ओर कह छोटी हर खाकर उसके ऊपर जल पीनेसे अच्छी तरह प्रकट हो जाती है । यद्यपि हर फड़वी होती है तो भी उसके ऊपर जख पीनेसे मु हमें कुछ मिठास भा जाती है, यह मिठास दी जलकी मधुरता हे । यदि शुद्ध जलमें साबुन घोला ज्ञाय तो उसमें -श्चाग तो उठते दें किस्तु अधिक नहीं। इसलिये यह जल वस्त्र घोनेके लिये न अधिक उपयोगी ( अच्छा ) है ओर न अनुपयोगी ( खराब ) हे |




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