हमारा भूमण्डल | Hamara Bhoomandal
श्रेणी : भूगोल / Geography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
614
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सौर मंडल ओर प्रथ्वी ७
धीरे २ सतह पर आगे बढ़ते रहते हैं और अन्त में दूसरे किनारे के पास आकर ग़ायत्र
हो जाते हैं । कुछ समय बाद यही धब्बे फिर दिखाई देंने लगते हैं। इन धब्बों के दृष्टि
में रहने और दृष्टि से ओरल रहने का समय बराबर (कोई १३ दिन) है। इससे प्रसा«
खित होता है कि सूर्य भी अपनी धुरी पर चक्कर लगाता है ।
जो ठारे तुम देखते हो
वे सभी सूर्य से बहुत बढ़े हैं।
इनमें एक तारा मंगलारि
( ४719128 ) तो इतना बडा
है कि उसमें न केवल सूर्य ही
वरन् सूर्य श्रौर उसके चारों
ओर प्रृथ्वी का सार्ग कई बार
समा सक्ता है। इनकी दूरी
मीलों में नापना असंभव है।
इसी कारण इनकी दूरी प्रकाश
ब्षों (1801 ५६४7७) में
नापी जाती है। प्रकाश प्रति
सेकरड १,८६,००० मील
चल्नता है । सूं का प्रकाश छह 3 196 छाध्या 8607 ६16 (४७ ए06 887
हमारे यहाँ ८ मिनट में श्राता है। तारों के प्रकाश को यहाँ तक पहुँचने में अनेकों चर्ष लग
जाते हैं । कुछ तारे तो ऐसे हैं जिनका प्रकाश असी तक हमारे पास पहुँचा ही नहीं है । ये
नक्षत्र (तारे) स्थिर मालूम होते हैं परन्तु वास्तव में ये स्थिर नहीं हैं, किसी अज्ञात वस्तु की
परिक्रमा कर रहे हैं । इन्ही नचत्रों में 'भरुवताराः ( 12010 81041 ) है जो सदा उत्तर
की ओर दिलाई देता है। इसके आस पास सात तारों का एक समूह सपि मंडल
(116 0169६ 13687) चक्कर लगाता है । ध्यान-पूर्वक देखने से मालूम होगा कि
कुछ नक्षत्र सदा अलग अलग मंडल में रहते हैं ओर अपने अपने मंडल में सदा एक
ही स्थान पर बने रहते हैं। इन मंडल को राशि! ( (018/1]40018 ) कहते हैं।
सुख्य राशियां १२ हैं जिनके नाम ये हैं--( १) मेष ( ॥1165 ), (२) वृष
(190178),(३) मिथुन ((७७॥)171), (४) कक (0৪০91), (২) सिंह (1,6०0),
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rakesh jain
at 2020-11-22 12:18:54rakesh jain
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