हिन्दी की अपनी समस्या | Hindi ki Apni Samasya

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Hindi ki apni samsaya  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी का हेतवाद २१ का कष्ट नहीं करते कि उधार मागने की आवश्यकता भी है या नहीं, और न यह सोचते हैं कि ऐसा करने का क्या परिणाम हो रहा है ओर अपने घर की दांलत पर क्या गुजर रदी है । कहने का नात्ययं यह है किं श्रवा फारसी शब्दो की मर्यादा निश्चित होनी चाहिये, और जो श्ररव्ी फारसी शब्द आवश्यक हैं अथवा जिन्हें ब्रिस्थिति दखते हुये रखना अ्भीष्ट है उन्हें छोड कर शेप्र का बहिष्कार कर देना चाहिये और भविष्य के लिये मी विना सोचे समभे अनावश्यक उदू शब्दो को हिन्दी मं धुसेढ़ने की बढती हृ प्रवृत्ति का दमन कर उन सिद्धान्तो को स्थिर कर देना चाहिये जिनके अनुसार अरबी फारसी शब्द ग्रहण किये जा सक्ते है | हिन्दी के एक स्टेंडड कोप का निर्माण किया जाय जिसमें शब्द निश्चित किये हुये रूप, निश्चित की हुई स्पेलिग में, निश्चित की हुई लिग के सकेत, आदि के साथ तो छुपे ही, उसमे केवल उन्हीं अरबी फारसी ( या आगरेजी ) शब्दों का समावेश किया जाय जो हिन्दी मं ग्रहीत माने जाये | जिन उद्‌ शब्दो का हिंन्दौसे बहिष्कार होना चाहिये उनको एक तालिका अलग से भी सूचनार्थ प्रकाशित की जाय । स्पष्ट है, यह स्टेडड कोष हिन्दी-शब्द-सागर से बहुत मिन्‍न होगा। हिन्दी-शब्द-सागर में से वे सब अरबी फारसी शब्द निकालना पडेंगे लिनको हिन्दी में स्थान नहीं दिया जा सकता | यदि नागरी प्रचारिणी समा को उदः शब्दों और “उर्दू शैली” से विशेष प्रेम है, तो वह उस 'शैली” के शब्दों को अलग कोष-बद्ध करके उसी 'शेली” की लिपि में छाप दें, और उसे अप- टठु-डेट रखने के लिये अपने कोप-फड का आधा रुपया इयरमाक कर दे # [ % जब रूस, चीन, आदि विदेश हिन्दी” के स्टेंडड कोप की मांग करें, ता नागरी प्रचारिणी सभा चाषे तो केवल हिन्दी शली का स्टंडरं कोष भेज दें ओर चाहे तो उसके साथ उर्द 'शैज्ञी? का उ्द+ लिपि में छुपा हुआ उद्द-कोष भी भेज दे 1 नागरी हिन्दी-रोष मे अरजुमन-तरष्छो-उद्‌ं के पाक्ष सं




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