पुरुषार्थ के बोलते चित्र | Purushharth Ke Bolatey Chitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म- ११ मार्च १९३४ को बिहार में सारण जिले के अंतर्गत दिधवारा अंचल का एक गाँव- हराजी।
शिक्षा- मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि।
कार्यक्षेत्र- पहली कहानी कल्पना में छपी। पाँचवें दशक के प्रारंभ से उपन्यासों का प्रकाशनारंभ। सन 1949 में प्रसिद्ध रेडियो नाटक उमर खैयाम का आकाशवाणी द्वारा राष्ट्रीय प्रसारण।
प्रकाशित कृतियाँ-
उपन्यास- लोहे के पंख, नदी फिर बह चली, भित्तिचित्र की मयूरी, मन के वन में, दो आँखों की झील, कुहासे में जलती धूपबत्ती, रिहर्सल, परागतृष्णा, शोकसभा, प्रियाद्रोही, पुरुष और महापुरुष, पूरा अधूरा पुरुष, पैदल और कुहासा, नई सुबह की धूप, इशारा, न खुदा न सनम आदि ३६ उपन्यास।
कहानी संग्रह- ज
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ |
का माग. प्रशस्त करता है। सिक्के वटोरनेवाला ज्ञानाजन नहीं कर
सकता । 1
` अन्ना अत्यंत भावुक प्रकृति को युवती था। उसने अब तक डास्याएन्स्की
की थ्रकाशित लगभग सारी रचनाएँ पढ़ ली थीं । एक जगह उसने अपनी
डायरी में लिखा है कि “डास्टाएव्स्क्री रचित मतकगृह के संस्मरण” पढ़ कर
में खूब रोयी थी / किसी की लेखनी का दिल पर इतना असर होना तो
महत्त्व की बात है। उसे डास्टाएव्स्की के पास भेजने से पहले जब आलिखिन
ने बतलाया कि उसे डास्टाएव्स्की के पास उपन्यास लिखने के लिए जाना
होगा तो उसने आलिखिन से पूछा, “सच, मैं उनके पास जाऊगी १”
उसे जसे अपने इस सौभाग्य पर विश्वास ही न हुआ । लेकिन
आलिखिन ने उसे विश्वास दिलाया ओर उसने डास्टाएन्स्की के नाम
एक पत्र भी दिया। उसने डास्टाएव्स्की की किताबें पढ़ी थीं उसे देखा
नहीं था। जिस समय उसका विश्वविख्यात उपन्यास क्राइम एण्ड
पनिशमेन्टः एक मासिक पत्र में धारावाहिक रूप से निकल रहा था, वह उसे
बढ़े चाव से पढ़ती और लेखक के स्वभाव, विचार आदि की भिन्न-भिन्न
कल्पनाएं किया करती थी। `
.. जिस मकान में डास्टाएव्स्की रहता था, वह मकान बड़ा था । लेकिन
उस मकान की हालत अच्छी नहीं थी। सारा मकान वीरान और बेमरम्मत
पढ़ा था। मकान के आसपास रहने वाले लोग साधारण मजदूर और छोटे-
छोटे दूकानदार थे। दूसरे रोज अंज्ञा आलिखिन का पत्र लेकर डास्टाएव्स्की
के मकान पर आई । मकान का मुख्य द्वार भीतर से बंद था। अन्ना डरी
ओर समी इई थी । उसे इतना विश्वास अवश्य हुआ कि उसका प्रिय
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