नागिरी प्रचारिणी पत्रिका भाग XV | Nagripracharni Patrika Bhag-xv

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Nagripracharni Patrika Bhag-xv by विविध लेखक - Various Writers

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ नागसीप्रचारिपखो पतिका विभव से अ्रपनी दृष्टि मोड़ ली, और उस शक मात्र आनंद को प्राप्त करने फे लिये जिससे उन्हें घ॑चित रख सकना किसी की सामथ्य में नहीं था, वे वैष्णद आाचायें' द्वारा प्रचारिव इस भक्ति फी धारा में उत्सुकता फे साथ डुच की लगाने लगे । इस प्रानंद का খ্রি ইহা फे विभिन्न भागों से फवियों फी मधुर वाणी में छलऊ छतककर बहने छगा। वंगात्ष में उम्रापति (१०५० वि० सं०) और जयदेव (१२२० वि० सं०) श्रपने हृदय फे सदुल उद्गायों को दिव्य गौतें में पहले ही प्रकट कर चुके थे। जयशेव को जगठ्ासिद्ध गीवगाविद के राधामाधव के ऋ्रोड़ा-कतापों की प्रति- घ्यन्ि सैथित कोकिल विद्यापति (१४५० वि० सं०) फौ कोमत्त-कि 'पदावल्ली! में सुनाई दी। गुजरात में नरसी मेहता ने, मारवाड मे मीराबाई ने, मध्यद्रेश में सूरदास ने और महाराष्ट्र में शानदेव, नामदेव घमौर तुमाराम मे इस भक्तिमूलक झानंद फी भ्रजस्त वर्षा कर दी । इससे दिंदुओं को प्रतिराघ फी एक ऐसी निष्फिय शक्ति प्राप्त हुई जिसने उन्दें मय की उपेक्षा, अत्याचारों का सदन और प्रायां कष्टों की सइदे हुए भी जीयन घारण करना सिखाया । इस प्रकार जे जाति नैराश्य के गर्त में पड़कर जीवन की आशा छोड़ चुफो धी उतने बह मत्व सचय कर लिया जिसने क्ञोथ हाने का नाम न लिया | भगवान्‌ के दिन्य सद्य से उदय द्दोनेवाना प्ला्नदातिरैक निष्किय शक्ति का दो रूप घारंण करके नहीं रद गया। उसने दैत्य-विनाशिनी क्रियमाण शक्ति का रूप भी देखा। सुल़सीदास ने पुरानी कद्दानी में इसी अनंद शक्ति से संयुक्त राम फो अपने प्रमोय थाय फा संघान किए हुए अ्न्यायी रावण फे विरुद्ध पड़ा दिखाया । भक्त-शिमद्ि समभे रामदास नै वेः श्रमे चलकर शिवाजी में बह शक्ति भर दो जिसने रिवाजी को भारतोय इतिद्दास में एक विशिष्ट स्थान दिला दिया ।




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