समय का स्वर | Samay Ka Swar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समय का स्वर || १५
एक बार बहुत रात गए हम दोनों छत पर चढ़े थे, उस बात पर कितनी हाय-हाय
श्री
॥ भक्तिपृपण को यह घटना याद नहीं थी। बोले--“हो सकता है 1 घेकिन इन्दौनि
तो बिन््ता उत्पन्न कर दी । बहुरानी का व कच्छा है लेकिन है बेहद लापरवाह किस्म
को । यही उसमें ऐव है ।*
लीबाददी बहू का पक्ष ले कर बोली--'वह अभी बच्ची है, कभी मैदान, बाग
बगीवा, वालाव देखा ही नही--देख रही है और मुग्ध हो रही है। मनाल को ही चाहिए
.««” सहसा बोलना बन्द कर सजग हुई | कान खडे हो गए। चौंक कर बोली--वया
हुआ ? वया है वह ? कहाँ गड़बड़ हो रहा है 2!
भक्तिभूषण भी चौंके और ज्यादा 1
बह वाहर के दरवाज़े की तरफ दौडे | इस खण्डहरनुमा महल के मूने कमरों में
से जैसे भय-मिश्चित हुवा की लहए निकल गई । जा मिली एक नारकीय कोलाहल के साध |
भक्तिभरूषण दरवाजा खोल कर जी-जान से चिल्लाने लगे, 'मृनाल--बहूराती 1?
अहुर नही निकले । लीलावती को अकेली छोड़ कर जाने को बात, दिसाग्र में
आई नही । कैवल जितना हो सका, गला ऊँचा उठा कर, आवाज चढ़ा कर पुकारते रहे
--मृनाल--बहूराती ।!
लीलावती भी आ गईं थी ! पति से खट कर खड़ी थी, भार्तवाद कर रही थी--
'मृताल--बहूरानी ।?
तीन
आर्तनाद बढ़ता रहा । संक्रामक रोग को तरह फैलने लगा--सारे मौहल्ले में ।'
सारे गाँव भर में मानों आर्तवाद सिर कूट-कूट कर मरने लगा । सानों उसने निश्चय कर्
लिया है कि आकाश वेध दतिया 1 खारी दुनिया को जता देगा कि 'लुटेरे! थाए है ६ सूट
रहे हैं जोर-गोरू । लूट रहे हैं सम्मान-मर्यादा, शान्ति-'ंखला । £
डिन्होंने शान्ति की सांस छोड़ते हुए सोचा था, थव डरने की कोई वात्र नहीं,
उनकी ही निश्चितता पर आ पिरो है जलतो मशाल्र । जैसे किसी ने वाट्द से भरी चोप
भे दियाचघाई छुला दो हो । |
कौन बता सकता है कि तोप में वारूद भरी वयों है ? ता
कोई नहीं बता सकता कि आज भी आग इततो झ्यादा वयो धयक रही है ? রা
जंगलीपन आज मी तोग्तर है?
এ
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