समय का स्वर | Samay Ka Swar

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Samay Ka Swar by आशापूर्णा देवी - Ashapoorna Deviममता खरे - Mamata Khare

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समय का स्वर || १५ एक बार बहुत रात गए हम दोनों छत पर चढ़े थे, उस बात पर कितनी हाय-हाय श्री ॥ भक्तिपृपण को यह घटना याद नहीं थी। बोले--“हो सकता है 1 घेकिन इन्दौनि तो बिन्‍्ता उत्पन्न कर दी । बहुरानी का व कच्छा है लेकिन है बेहद लापरवाह किस्म को । यही उसमें ऐव है ।* लीबाददी बहू का पक्ष ले कर बोली--'वह अभी बच्ची है, कभी मैदान, बाग बगीवा, वालाव देखा ही नही--देख रही है और मुग्ध हो रही है। मनाल को ही चाहिए .««” सहसा बोलना बन्द कर सजग हुई | कान खडे हो गए। चौंक कर बोली--वया हुआ ? वया है वह ? कहाँ गड़बड़ हो रहा है 2! भक्तिभूषण भी चौंके और ज्यादा 1 बह वाहर के दरवाज़े की तरफ दौडे | इस खण्डहरनुमा महल के मूने कमरों में से जैसे भय-मिश्चित हुवा की लहए निकल गई । जा मिली एक नारकीय कोलाहल के साध | भक्तिभरूषण दरवाजा खोल कर जी-जान से चिल्लाने लगे, 'मृनाल--बहूराती 1? अहुर नही निकले । लीलावती को अकेली छोड़ कर जाने को बात, दिसाग्र में आई नही । कैवल जितना हो सका, गला ऊँचा उठा कर, आवाज चढ़ा कर पुकारते रहे --मृनाल--बहूराती ।! लीलावती भी आ गईं थी ! पति से खट कर खड़ी थी, भार्तवाद कर रही थी-- 'मृताल--बहूरानी ।? तीन आर्तनाद बढ़ता रहा । संक्रामक रोग को तरह फैलने लगा--सारे मौहल्ले में ।' सारे गाँव भर में मानों आर्तवाद सिर कूट-कूट कर मरने लगा । सानों उसने निश्चय कर्‌ लिया है कि आकाश वेध दतिया 1 खारी दुनिया को जता देगा कि 'लुटेरे! थाए है ६ सूट रहे हैं जोर-गोरू । लूट रहे हैं सम्मान-मर्यादा, शान्ति-'ंखला । £ डिन्होंने शान्ति की सांस छोड़ते हुए सोचा था, थव डरने की कोई वात्र नहीं, उनकी ही निश्चितता पर आ पिरो है जलतो मशाल्र । जैसे किसी ने वाट्द से भरी चोप भे दियाचघाई छुला दो हो । | कौन बता सकता है कि तोप में वारूद भरी वयों है ? ता कोई नहीं बता सकता कि आज भी आग इततो झ्यादा वयो धयक रही है ? রা जंगलीपन आज मी तोग्तर है? এ




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