हिंदी साहित्य का इतिहास भाग 2 | Hindi Sahitya Ka Itihaas Part II

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| ६ ) जैसा शिः शरने तपन्‌ पतप कि परव क दथः भनी अय নী = ति कादर ¶ न्मरीः ह्वरः स 2; गे संयार क নী ছু {1 $ ০] হন है 44६ 4 . ^^ ५! নাঃ £. श्र्रः भी दे देता है और নানী চুল ही दगा भर पमन तमिप গা লিদান ही शप्दे वर्दी ने किये जारे-- १५ हैं से आदिया मे अधि 27 था १४ प्रंक ही प्राप्त होते 2 । दहया ए/क्षार्थी झारया करते की सही चित्रि २ परिचित नहीं होते ! प्रन पटने प्याण्यः को ठीक আয় ই পাইল কী विति जान ननी श्रावध्यक है-- | याद्या करने फी विधि प्रत्येक कवि के प्रस्तपत्र में व्याख्या के लिये प्रायः ले या आठ तक स्थल दिये जाते हैं जिनमें से ३ था ४ स्थलों की व्णख्या करनी प्रावग्यक होती है । আল जित स्थलों दीं व्याख्या प्रच्छी तंयार हो उन्हें व्यास्या करने थे! लिये चुन लेना चाहिये । फिर व्याख्या को तीन भागों चिनु केर तेना चाहिए। प्रथम भांग में उस प्रथ का অহন प्राविध्यंक होता है जिसमें से उस काव्य स्थल को लिया गया है। यदि काव्य-स्थल किसी प्रबन्ध-काथ्य में से लिया गया है तो उससे पूर्व की स्थिति को स्पष्ट कार देना प्रावश्यक होता है श्रौर सदि किसी मुक्तक रचना से लिया गया है (जैसे कबीर था सूर-काव्य में से) तो उस रचना का मूल भाव भूमिका रूप में दो पक्तियों में कह देना ठीक होगा । নি प्र. दूसरे भाग की वात लोजिये। इस भाग में काव्यांद की व्याख्या सरल से सरल दब्दों में और स्पष्ट शैली में होनी चाहिए । व्याख्या मेँ जितनी জ্বলা होंगी उतने भ्रधिक अंक मिलने की गुंजाइश रहेगी। व्याव्या দ্যা भतलव छब्दार्थ ही नहीं होता भ्रपितु शब्दों में निहित भाव भौर विचारों को पूर्णतः स्पष्टीकरण भ्रावश्यक है ।, व्याख्या बहुत प्रधिक लम्बी तदधो रौर “ভে हीं बहुत छोटी हो। सामान्यतः काव्यांध के परिमाशा से জিতুন भो चौगनी हो सकती, है । দারা ... तीसरे भाग में: काह्यांता: में रिह्िंत २४०४ বু -নিনা জাম को. स्पष्टीकरण करना होता है. 8) ঠা सतत रत, प्रंजंकार, मापा




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