व्यापारिक बैंकों के वित्त का कृषि अर्थव्यवस्था पर प्रभाव | Vyaparik Bainkon Ke Bitt Ka Krishi Arthavyavastha Par Prabhav

Vyaparik Bainkon Ke Bitt Ka Krishi Arthavyavastha Par Prabhav by रजनी त्रिपाठी - Rajni Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शेष स्रोतों में साधारण परिवर्तन हुये हैं | तीसरी पंचवर्षीय योजनाकाल (1961-66) के पश्चात्‌ या आर्थिक आयोजन के लगभग दो दशकों के समयावधि मे कृषि क्षेत्र के ऋण व्यवस्था में सुधार एवं विकास के सम्बन्ध में विचारकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ ऐसा अनुभव किया जाने लगा कि कृषि विकास केवल सहकारी संगठनों द्वारा प्रदत्त ऋणों के आधार पर तीव्र दर से नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक बड़ी मात्रा में ऋण या वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता है। इस विचार के परिणामस्वरूप कषि क्षेत्र में वित्त प्रदान करने के लिए बहुएजेन्सी दृष्टिकोण अपनाये जाने की आवश्यकता का अनुभव किया गया। तीसरी योजना के पश्चात्‌ वर्ष 1966-67 में कृषि विकास की नवीन रणनीति का विचार प्रस्तुत किया गया। इस रणनीति कं अन्तर्गत कृषि कं आधघुनिकीकरण के लिए उन्नत बीज, उर्वरक, सिचाई के साधनों का विकास, कृषि मे उन्नत यन्त्रं एवं उपकरणों के प्रयोग के लिए अधिक वित्त की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा जो केवल सहकारी संगठनों द्वारा नहीं प्रदान किया जा सकता। बल्कि इसके लिए एक बड़ी मात्रा में ऋण या वित्तीय संसाधनों की ` आवश्यकता है। इस विचार के परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र में वित्त प्रदान करने के लिए बहुएजेन्सी दृष्टिकोण अपनाये जाने का विचार स्पष्ट किया गया। ऐसी परिस्थिति में अन्य संस्थागत स्रोतों का विकास किया जाना आवश्यक हो गया। कृषि वित्त आवश्यकता के आपूर्ति के लिए वर्ष 1967 में व्यापारिक बैंकों पर सामाजिक नियन्त्रण किया गया। इसके पश्चात वर्ष 1969 में 14 प्रमुख बड़े व्यापारिक या व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इसके अन्तर्गत जिन बैंकों की जमा पूँजी 50 करोड़ रूपये से अधिक थी उनका राष्ट्रीयकरण किया गया। व्यापारिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण का प्रमुख उद्देश्य इन बैंकों को कृषि क्षेत्र में वित्त प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित [कैया जाना था। इसके पश्चात वर्ष 14980 में 6 और व्यापारिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया | वर्तमान समय में सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत 28 प्रमुख व्यापारिक बैंक हैं। इन बैंकों के पास कुल बैंकिंग व्यवसाय का लगभग 9५० प्रतिशत है। राष्ट्रीयकरण कं पश्चात से कृषि वित्त कं क्षेत्र में व्यापारिक बैंकों द्वारा किसानों को अल्पकालिक, मध्यकालिक एवं दीर्घकालिक तीनों प्रकार के वित्तों का प्रबन्ध किया जा सका है। इसके अतिरिक्त विपणन संसाधन एवं भण्डारण के लिए भी इनके द्वारा वित्त प्रदान किया जाता है|




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