प्रद्युमन चरित | Pradyuman Charit

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pradyuman Charit by माताप्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupta

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about माताप्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupta

Add Infomation AboutMataprasad Gupta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
क, कालसंबर अपनी प्रिया कब्चनमाला के साथ त्रिमान द्वार उधर से जादा या 1 उसने प्रध्वी पर पड़ी हुई मारी शिला को हिलते देखा । शिला को उठाने पर उसे उमके नीचे एक अत्यधिक सुन्दर वालकझ दिखाई दिया। तुरन्त ही उसने डस सुन्दर चालक को उठा लिया और अपनी स्त्री को दे दिया। कालसंवर ने नगर में पहुँचने के बाद उस बालक को अपना पुद्र घोषित कर दिया । उधर रुक्मिणी पुत्र वियोगाग्नि मे जलने लमी । उसी समय नाद ऋषि का वहां आगमन हुआ । जब उन्होंने प्रयू मन के अकस्मात्‌ गायत्र छोने के समाचार सुने तो उन्हें भी दुग्ब हुआ । रुक्मिणी को यैवं वधात हए नारद ऋषि प्रद्य मन का पता लगाने विदेह क्षेत्र में केबली भगवान्‌ के समबसरण में गये । वहां से पत्र लगाकर वे रुतिमणी के पास आये और कह्दा कि १६ वपे वादं प्रद स्न स्वयं सानन्द घर्‌ श्रा जायेगा। कालसंबर के यहां प्रयुम्त का लालत पालन होने लगा। पांच वर्ष की आयु में ही उसे त्रिद्याध्ययन एवं शस्त्रादि चलाने की शिक्षा ग्रहण करने के लिप्‌ भेजा गया! थोड़े दी समय मे बह सवै विद्याओं मे प्रवीण दो गया । कालसंवर फे प्रसूम्न के श्रतिरिक्तः ५०० शरीर पुत्र थे । राजा फालसंब्र का एक शत्र था राजा मिंदरथ जो उसे आये दिन तंग किया करता था। उसने अपने ५०० पुत्रों के सामने उस सिंहरथ राजा को मार कर लाने का प्रस्ताव रखा पर किसी पुत्र ने कालसबर के इस प्रस्ताव को स्व्रीकार करने की हिम्मत नहीं की । केबल प्रद्म॒ुम्न ने इसे स्त्रीकर किया और एक बड़ी सेना लेकर मिंहरथ पर चढ़ाई करदी | पहिले तो राजा सिदरथ प्रथ मत को बालक सममं धर लड़ने से इन्कार करता रदा, पर वार धार प्रय मन के ललकारने पर लड़ने को तैयार हुआ | दोनों में घोर युद्ध हुआ और चन्त मे विजयश्री प्रद्य मन को मित्ली | घह राजा सिंदरथ को वांव1र अपने पिता कालसंघर के सामने ले आया । कालमंबर अपने शत्रु को अपने अधीन देखकर प्रथ मन से बड़ा खुश हुआ और उसे युवराज पद दिया एवं इस प्रकार उन ४०० पुत्रों का प्रधान बना दिया। इस प्रतिकूल व्यवद्वार के कारण सब कुमार प्रद्यू मत से द्ेप करने लगे एवं उसे मारने का उपाय सोचने लगे। उन सब कुमाएं ने प्रथ मन को चुलाया ओर उसे बनक्रीडा के बहाने बन में ले गये। अपने भाइयों के कहने से प्रद्यू मत जिन मन्दिरों के दशेनाथ सब श्रथम बिज्यगिरि प्रेत पर चढ़ा, पर बहा उसने फु बार करता हुआ एक भयंकर सर्प देखा । प्रथू मन तुरन्त ही डस डरावने सपे से भिड़ गया तथा उसकी पूछ पकड़ कर उसे जमीन पर दे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now