तत्त्व ज्ञान | Tatwa-gyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तत्व-ज्ञान : क्षेत्र, सम्बन्ध ओर विधि ५
इन तीनों विद्धाओं की हालत में हम देखते हैं किन ` ` . |
१. प्रत्येक शाखा अपने लिए कार्य-क्षेत्र निश्चित करती है; और जहां तक बन
पड़े, उसके अन्दर ही काम करती है।
२. निचित क्षेत्र में उसका प्रमुख काम तथ्य की खोज है! इसके लिए
परीक्षण और निरीक्षण. का प्रयोग होता है। प्रयोगशाला इन विभागों काः केन्द्र
होती है। *
हम गणित के आचार्य के कमरे में आते हें। दीवार पर एक काछा बोडे लगा है,
और प्रोफेसर की मेज पर चाक की डली पड़ी है। हम पूछते हँ-- प्रयोग-शाला कहां
हें! उत्तर मिलता है--हां प्रकृति अध्ययन का विषय ही नहीं; प्रयोग-शाला का क्या
काम? हम तो संख्या ओर आकाड के गुणो की बाबत चिन्तन करते हँ ।' यहां भी
सत्र कीसीमा विद्यमान है, परन्तु परीक्षण और निरीक्षण का स्थान मनन ने ले लिया
है। प्राकृत विज्ञान में तथ्य की प्रधानता है। एक तथ्य, वास्तविक तथ्य, किसी मान्य
प्रतिज्ञा को समाप्त कर देने के लिए पर्याप्त है। गणित में खोज का विषय तिथ्य' नहीं,
तत्क-ज्ञान का क्षेत्र क्या है ?
इसके क्षेत्र के बाहर कुंच भी नहीं । विज्ञान की प्रत्येक शाखा सत्ता के किसी
अंश का अध्ययन करती है;. तत्वज्ञान का. विषय समस्त सत्ता है । विस्तार में इसका
` क्षेत्र निस्सीम है। सारा विव. इसके विवेचन का विषय है ।
यह् पहिला विदोषण है जो तत्व-ज्ञान को विज्ञान से अलग करता है ।
इसका अर्थं यह् नहीं कि तत्व-ज्ञान प्राकृत विद्याओं का समह् है! विज्ञान ओर
तत्व-ज्ञान के दुंष्टि-कोण मे मेद है । जंसा हमने ऊपर कहा है, प्राकृत विज्ञान तथ्य
की खोज को अपने उदेश्य में प्रथम स्थान देता है । इसके लिए तथ्य की अपने आप में
कीमत है तत्वज्ञान के किए, कोई तथ्य ज्ञान-मंडल के अंश की स्थिति में ही महत्व
रखता है । ऐसे तथ्य की बाबत तत्व-ज्ञान पूछता है कि इसे समझ कर हम विश्व की
बाबत क्या जान सकते हें। अन्य शब्दों में, तत्व-ज्ञान मौलिक तत्वों को अपने विवेचन
. का-विषय बनाता है।
०:७४ भौतिक विज्ञान प्रकृति ओर ` उसकी गति की बाबत खोज करता है। गति एकं
स्थान से दूसरे स्थान को होती है, और इसमें कुछ काल लगता है। हम भौतिक विज्ञान
से पूछते हें---तुम्हें कैसे मालम है कि प्रकृति का अस्तित्व है? तुम्हें केसे पता है कि
देश और काल सत्ता के भाग हैं, और भ्रम-मात्र नहीं ?” वह उत्तर देता है--में इन
. झमेलों में नहीं पड़ता; में यह फर्ज करके चलता हूं कि प्राकृत पदार्थं विद्यमान हें,
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