तिब्बे हैवानात अर्थात पशु चिकित्सा | Tibbe Haivanat Arthat Pashu Chikitsa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
78
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दीबाचा, ५
(४) चौरस सीधी जमीन पर जानवर खड़े रहें ओर पीछे की
तरफ कृष्ट हाट रहे ताकि पेशावर इष्टा न होयके अर नारी
के द्रारा निकल जाय,
१४, ऐसी जगह में कभी कभी आग भी जछादी जाया करे तो
अच्छा है, इससे मक्वी, मच्छए, कलीलियां, बगे और दीगर किस्म के
कीड़े मकोड़े व ज़हर जो उस जगह रहकर जानवरों को बीमार करते ई
या तो चले जाते हैं या नव होजाते है
१५, जानवर को चारा अच्छा दिया जाबे, आर पानी
पिलाया जावे, न कि गद़ढें का जो सड़ा हुआ होता है
अच्छा
जिस वक्त खुराक दीनाव यह ज़रूर ध्यान रखना चाहिये कि बह
मुवाफ़िकतर दी जावे; यानी न ज्पादा ने कम. इन दोनों से नुक्सान
है; मसलन ज्यादा खुराक देने स वदहज़मी का होना ओर कम देने से
निबेल होनाने का संभव है,
१६, जानवर से मेहनत भी काफ़ी लेनी चाहिये ताकि जो कुछ बह
खाय बह हज़प होजाय,
१७, तन्दुरुस्ती का उयदातर दारामदार मोसम पर है, अगर हर मौसम
में एकहीस। इन्तज़ाम रहे तो यह भी म्ुफ़ीद नहीं, वलिक नुक़्सान पहुंचता है
इसवास्ते मौसम की सझरी वे ग!मी का रव्याल रखना ज़रूर रै. अगर
गर्भी का मौसम हो तो जानवर्गो को हू व तेज़ धूप से बचाना चाहिये.
ऐसी जगह जानवर को चराना चाहिये जहां साफ़ पानी के मिलन
का सुख हे और चारा भी अच्छा मिले. अक्सर देखा गया है कि लोग
गर्मी के मौसम में वह घास जा बरसात में भीगकर गल जाती है उसे
खिलाते हैं. यह भी जानवगें की तन्दृरुस्ती में फ़के छाने का कारण होता
है. शुरू बरसात में नय। चग खाने से वहुतस जानवरों को जुकाम
खांती, बुखार आर फेकहे की बीमारियां होजाती हैं. अछावा इसके इन `
मोसमों में छूतवाली बीमारियां ( मो एक से दूधरे को व दूसरे से तीसरे को
लगकर অব की शक्क में पढ़ होती है) फेल जाती हैं, इसवास्ते मौसम का पूरा
लिहाज़ का चाहिये, बरवात में जो घास उगना है उसके खाने से
जानवरों को जहांतक मुभकिन हो बचाया जावे ओर छतवाली बीमारियों
जानवरों की
अगह पर भाग
जल।ना मुर्फ़ाद
है.
चाग मुआ-
फकम् भो
থানা अच्छा
दिया আন,
जाबवबर स
भब्नत कफ
टर्न चाहिय,
मौसम का
ऽन् ब छत
थी बीमारियां,
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