अन्तिम झाँकी | Antim Jhanki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शतन वपौभिनन्दन ७ सोने की तैयारी की । मैंने पैर और सिर मे माल्शि की | पैर दवाये। अभी चुखार व्रिककुल तो उतर नहीं गया था | सोने के पहले बुखार दिखवाया था | पैर तो मुग्किल से पॉच मिनट ही, मुझे राजी रखने के ल्ए ही दबवाये और तुरन्त दी सो जाने ऊ लिए क्या । सोते-सोते पुनः मुझसे कहा कि “आज सुबह मैंने जो ठुझ्े कहा, उसे तेरी डायरी से तो पढा | लेकिन जरा गम्मीरता से विचार करना | अभी तो मे इठना व्यान रखता हू । अगर इतना व्यान न रखता, तो तू कब की खतम हो गयी होती या किसी बडे रोग का शिकार होते देर न लगती । वजन गिरने लगे, कमजोरी माल्म पड़े, तो तत्काल सावधान हो जाना चाहिए | आज जीवराज भी मुझसे कह रहे थे कि यह लडकी अगर भविष्य मे ध्यान न रखेगी, तो हैरान हो जायगी | बच्ची है और चढता खून है, इसलिए पता नदी चकर पाता ` मै पुरन्त सो गयी यर ध्यान रखकर स्वस्थ हो जागी, यह कहा | “को गीताजी सीख छेनी चाहिए । लेकिन 'नहीं' कह रहे है| वापू कहते है, तो फिर उसे मेरे पास रहने का मोह छोड देना ही होगा । या तो राजकोट जाय या * के पास जाय । यदो रहना ओर समी वातो म हठ पक्डना कैषे चल सकता टै ? यहां कौन जबर्दसी रखना चाहता है! भाई साहब के साथ भी ''के बारे में बातें हुई | भाई साहब ने मौछाना साहब का वह मापण सुनाया, जो लखनऊ में हुआ था | आज तो मुलकातियो की भीड इतनी अधिक रही कि देखते ही थकान भाद्म पडने रूगती थी | दस बजे सपने सोने की तैयारी क्री । वापू ने जल्दी उठकर चिट्ठियों नहीं लिखायीं और वे बढ गयी है | शायद इसीलिए उन्होंने अपने वित्तर के पास लिखने का सारा सामान रखवा ल्या है। ০০৬ नूतन व्षोभिनन्दन 1२३ बिरिला-भवन, नयी दिल्ली १-१-४८ नियमानुसार ३॥| बजे प्रार्यना हुई | प्रार्थना के बाद बापू ने पत्र लिखे ** “यहाँ का मामला मेरी राय से कुछ सुधर नही रहा है। अभी तो बहों बैठा हूँ ।




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