अन्तिम झाँकी | Antim Jhanki
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शतन वपौभिनन्दन ७
सोने की तैयारी की । मैंने पैर और सिर मे माल्शि की | पैर दवाये। अभी
चुखार व्रिककुल तो उतर नहीं गया था | सोने के पहले बुखार दिखवाया था |
पैर तो मुग्किल से पॉच मिनट ही, मुझे राजी रखने के ल्ए ही दबवाये और
तुरन्त दी सो जाने ऊ लिए क्या । सोते-सोते पुनः मुझसे कहा कि “आज सुबह
मैंने जो ठुझ्े कहा, उसे तेरी डायरी से तो पढा | लेकिन जरा गम्मीरता से विचार
करना | अभी तो मे इठना व्यान रखता हू । अगर इतना व्यान न रखता, तो
तू कब की खतम हो गयी होती या किसी बडे रोग का शिकार होते देर न
लगती । वजन गिरने लगे, कमजोरी माल्म पड़े, तो तत्काल सावधान हो जाना
चाहिए | आज जीवराज भी मुझसे कह रहे थे कि यह लडकी अगर भविष्य मे
ध्यान न रखेगी, तो हैरान हो जायगी | बच्ची है और चढता खून है, इसलिए
पता नदी चकर पाता `
मै पुरन्त सो गयी यर ध्यान रखकर स्वस्थ हो जागी, यह कहा | “को
गीताजी सीख छेनी चाहिए । लेकिन 'नहीं' कह रहे है| वापू कहते है, तो फिर
उसे मेरे पास रहने का मोह छोड देना ही होगा । या तो राजकोट जाय या * के
पास जाय । यदो रहना ओर समी वातो म हठ पक्डना कैषे चल सकता टै ?
यहां कौन जबर्दसी रखना चाहता है! भाई साहब के साथ भी ''के बारे में
बातें हुई | भाई साहब ने मौछाना साहब का वह मापण सुनाया, जो लखनऊ में
हुआ था | आज तो मुलकातियो की भीड इतनी अधिक रही कि देखते ही
थकान भाद्म पडने रूगती थी |
दस बजे सपने सोने की तैयारी क्री । वापू ने जल्दी उठकर चिट्ठियों नहीं
लिखायीं और वे बढ गयी है | शायद इसीलिए उन्होंने अपने वित्तर के पास
लिखने का सारा सामान रखवा ल्या है। ০০৬
नूतन व्षोभिनन्दन 1२३
बिरिला-भवन, नयी दिल्ली
१-१-४८
नियमानुसार ३॥| बजे प्रार्यना हुई | प्रार्थना के बाद बापू ने पत्र लिखे **
“यहाँ का मामला मेरी राय से कुछ सुधर नही रहा है। अभी तो बहों बैठा हूँ ।
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