प्रमेयरत्नमाला | Prameyaratnamala

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prameyaratnamala by पंडित हीरालाल जैन - Pandit Heeralal Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हीरालाल जैन - Heeralal Jain

Add Infomation AboutHeeralal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पक्वानां १५ यह स्वर्षणं सजतीय भौर विजातीय दोनों से व्यावत्त होता है। और जो কধাগ, ই भिन्न है पह सामान्यरक्षण' है। प्रत्येक गोव्यक्ति गोस्वलक्षण है ओर अनेक गायो मे जो योत्वकूप एक: सामान्य की प्रतीति होती है वह वामान्यलक्षण है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि बौढ्धों ने सामान्य को मिथ्या माना है भोर उसको विभय करने बाते अनुमान को प्रमाण माना है.। किन्तु भिथ्या सामान्य को विषय करने कै कारणं अनुमान भी श्रान्त होना चाहिए, फिर उमे प्रमाणता कैसे ? बौदो ने इसका उसर यष्ट दिया है कि अनुमान परम्परा से वस्तु ( स्वेलक्षण ) की प्राप्ति में कारण होने से प्रमाण है। जैसे एक व्यक्ति को मणिप्रभा में मणिबुंद्धि हुई और दूसरे पुरुष को प्रद्मीपप्रभा में मणिषुद्धि हुई। ये दोनों ज्ञान मिथ्या हैं, फिर भी मणिप्रभा में होने वाली मणिबुद्धि को मणि की प्राप्ति में कारण होने से प्रमाण हो मानना चाहिए । उच्ची प्रकार अनुमांन-बुद्धि भी वस्तु की प्राप्ति में परम्परा से कारण होने से प्रमाण है। मणिप्रभा में मणिबुद्धि इस प्रकार होती है*---एक कमरे के अन्दर अलि मे एक मणि रक्ला हुमा है । रात्रि का समय है। कमरे का दरवाजा बन्द है। दरवाजे में एक छिद्र है और मणि की प्रभा उस छिद्र में व्याप्त हो रही हैं । दरवाजे के सामने कुछ दूर पर खड़ा हुआ व्यक्ति उस छिद्र में व्याप्त मणिप्रभा को ही मणि समझ लेता है। किन्तु जब बह मणि को उठाने के लिए जाता हैं तब वहाँ मणि को न॒ पाकर दरवाजा खोलकर अन्दर चला जाता हैं, और इस प्रकार मिध्याज्ञान से भी वस्तु ( मणि ) को प्राप्त कर लेता है | इसी प्रकार अनुमान के द्वारा सामान्य को जानकर व्यक्ति सामान्य ज्ञान के अनन्तर स्वलक्षण को प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार अनुमानबुद्धि परम्परा से स्वलक्षण की प्राप्ति में कारण होती है। वुत्तिकार ने बौद्ों की उक्त मास्यता का खण्डन किया है। जब सामान्य कोई वस्तु ही नहीं है तब उसको विषय करने वारा अनुमान परम्परा से भी वस्तु की प्राप्ति नहीं करा सकता है । प्रत्यक्ष प्रमाण का विषय विशेष ( स्व॒लक्षण ) ही है, सामान्य नहीं, उनकी ऐसी मान्यता भी ठीक नहीं हे क्‍योंकि बौड्धों ने जिस प्रकार के विनाशशीर, १, अन्यतु सामान्यलक्षणम्‌ । --न्यायविन्ु पर १७ २, मणिप्रदीपप्रभयोः मणिबुद्धधाभिधावतीः । मिथ्याज्ञानायिशेषेऽपि विरशेषोऽ्यंक्रियां प्रति । --प्रमाणवाप्तिक २।५७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now