चित्रशाला भाग 2 | Chitrashala Bhag-2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक - Vishwambharnath Sharma Kaushik
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वतंत्रता ত
ग़ल्लाम बनफर रहते हैं । संसार में दोनों ही बातें मिलेंगी--स्त्रियोँ
'घुरुषों की गज्ञास बनकर रहती हें ओर पुरुप खी ऊ गलाम यन-
कर रहते हैं।
प्रियंवदा देवी ने धृणा से नारू फुन्नाकर कहा--अशितज्षित ख्लियाँ :
ही पुरुषों फी ग़लास बनकर रहतो हैं ।
सुखदेव०--योरप और अमेरिका की स्तियाँ तो शअ्शिज्षित नहीं
होतीं; परंतु वहाँ भी स्त्रियाँ पुरुषों की गुल्ञाम बनकर रददवी ই । `
प्रियंवदा--क्यों ग़ज्जास बनकर रहती हैं ?
सुखदेव०--जदाँ प्रेम होता है, वहाँ एक दूसरे का ग़ुलास बनना
ही पढ़ता है ।
.प्रियंददा--परंतु वहाँ निय तल्लाक्र भी तो होते रहते हैं ।
सुपदेव०--बवेशक ! इसका कारण यही है कि जिन ख्री-पुरुषों में
प्रेम नहीं होता, वे चात-बात में स्वतंत्रता और श्रधिकार की दुद
देते हैं, परिणाम यह होता है कि आपस में जूता चलता है, और
चलाक़ की नौबत आ जायो है ।
इतना कहकर सुखदेवप्रसाद उठ खढ़े हुए और हाथ-मँद् धोने
लगे ।
प्रियंबदा देवी उठकर आसन पर अपनी याजी के सामनेजा
बैठीं ओर भोजन करने लगीं। सुखदेवप्रसाद तौलिए से द्वाथ থাই
डुए कुर्सी पर ध्रा बैठे 1
प्रियंचदा देवी ने चुपचाप भोजन किया । भोजन करने के पश्चात्
हाथ-मुँह धोकर पहले उन्होंने अपने और पति के लिये पान बनाए,
तत्पश्चात् पुनः पर्लँग पर आ बेठीं। थोड़ी देर तक बढ़ चुपचाप
चैठो रहीं, इसके उपरांत उन्दने कहा-- ईश्वर ने खी-पुरुप को समान
यनाया द । दोनों को समाने स्वतंत्रता तथा समान अधिकार मिलने
चाहिए ।
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