चित्रशाला भाग 2 | Chitrashala Bhag-2

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Chitrashala Bhag-2 by विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक - Vishwambharnath Sharma Kaushik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वतंत्रता ত ग़ल्लाम बनफर रहते हैं । संसार में दोनों ही बातें मिलेंगी--स्त्रियोँ 'घुरुषों की गज्ञास बनकर रहती हें ओर पुरुप खी ऊ गलाम यन- कर रहते हैं। प्रियंवदा देवी ने धृणा से नारू फुन्नाकर कहा--अशितज्षित ख्लियाँ : ही पुरुषों फी ग़लास बनकर रहतो हैं । सुखदेव०--योरप और अमेरिका की स्तियाँ तो शअ्शिज्षित नहीं होतीं; परंतु वहाँ भी स्त्रियाँ पुरुषों की गुल्ञाम बनकर रददवी ই । ` प्रियंवदा--क्यों ग़ज्जास बनकर रहती हैं ? सुखदेव०--जदाँ प्रेम होता है, वहाँ एक दूसरे का ग़ुलास बनना ही पढ़ता है । .प्रियंददा--परंतु वहाँ निय तल्लाक्र भी तो होते रहते हैं । सुपदेव०--बवेशक ! इसका कारण यही है कि जिन ख्री-पुरुषों में प्रेम नहीं होता, वे चात-बात में स्वतंत्रता और श्रधिकार की दुद देते हैं, परिणाम यह होता है कि आपस में जूता चलता है, और चलाक़ की नौबत आ जायो है । इतना कहकर सुखदेवप्रसाद उठ खढ़े हुए और हाथ-मँद् धोने लगे । प्रियंबदा देवी उठकर आसन पर अपनी याजी के सामनेजा बैठीं ओर भोजन करने लगीं। सुखदेवप्रसाद तौलिए से द्वाथ থাই डुए कुर्सी पर ध्रा बैठे 1 प्रियंचदा देवी ने चुपचाप भोजन किया । भोजन करने के पश्चात्‌ हाथ-मुँह धोकर पहले उन्होंने अपने और पति के लिये पान बनाए, तत्पश्चात्‌ पुनः पर्लँग पर आ बेठीं। थोड़ी देर तक बढ़ चुपचाप चैठो रहीं, इसके उपरांत उन्दने कहा-- ईश्वर ने खी-पुरुप को समान यनाया द । दोनों को समाने स्वतंत्रता तथा समान अधिकार मिलने चाहिए ।




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