स्मरण कला | Smaran Kala

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Smaran Kala by धीरजलाल टोकरसी शाह - Dheerajlal Tokarasi Shaahमोहनलाल 'शार्दुल ' - Mohanlal 'Shardul'

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धीरजलाल टोकरसी शाह - Dheerajlal Tokarasi Shaah

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मोहनलाल 'शार्दुल ' - Mohanlal 'Shardul'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पनञ्न-प्रथण कार्य-सल्ि के भावश्षयक्‌ अंग प्रिय बन्धु । भगवती सरस्वती का स्मरण ओर वन्दन पूरवेकं जिज्ञासा पूर्ण तुम्हारा पत्र यथा समय मिल गया है । इसमे तुते स्मरण-गक्ति को विकसित करने की और उसके लिये मेरे सहयोग प्राप्ति की जो ग्रभिलाषा प्रकट की है, उसका सै योग्य सम्मान करता हूँ ) अनुभव का उचित विनिमय मेरे लिए आनन्द का विषय है, इसलिए प्राभार ज्ञापन की कोई श्रावञ्यकत्त! नही । भ्रव मुरौ की बात । श्रगर तुम्हे स्मरण शक्ति का विकास करना ही हो तो उसके लिए सबसे पहले हढ नि३चय करना पडेगा । यथार्थे मे हढ निश्चय के बिना किसी भी काये की सिद्धि नही हो सकती । “चलो, प्रयास कर ले, कार्ये सम्पन्न होगा तो ठीक और न होगा तब भी ठीक” इस प्रकार के ढीले-ढाले, ्रधकचरे विचारो से कार्ये आरम्भ करने वाला थोडी-सी उलभन, जरा-सी प्रतिकलता ओर तनिक सी मुसीवत प्रति ही पीछे हट जाता है । इसलिए ही प्राज्ञ पुरुष ने “देह वा पातयामि कार्यं वा साधयामि यह्‌ सकल्प-मय भावना-सूत्र प्रसारित किया है। इसलिए इस बात का तुम हृढ निरचय करो कि--“मै अ्रपनी स्मरणु-शक्ति को अवश्य विकसित करू गा | तुम्हारा यह्‌ निश्चय कोई रेख-चिल्ली का भिकल्प नही है, कुतुहल-प्रिय मन की तरग मात्र नही है, किन्तु सबल आत्मा की इढ़-अतिज्ञा है । ऐसा विचार निरन्तर रखोगे तो सफलता का द्वार सत्वर ही खुल जायगा । इसलिए एक नोट-बुक लेकर उसके प्रथम पत्र के ऊपरी भाग मे निम्नलिखित शब्द श्र कित करो-




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