हमारी आर्थिक समस्याएँ | Hamari Arthik Samasyayen
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
361
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= भारतोय कृषि की समस्याएं
हुआ है पर छोटे किसानों वो उस मात्रा मे लाभ नहों हुआ है जितना सोना
जाता है। दूसरी जीवनोपयोगी सारी वस्लुएँ उसे मैह्गे दा्मो--नोर बाजार के
হালা पर खरोदनों पढ़ी हैं। भारतीय किसान आात्म-निर्भर नहीं हैं, इसलिए उह
महंगी का भी पूरा-पृूरा लाभ नहीं उठा सकता | कृपि-प्लूगा को समस्या लगभग
ज्यों की त्यों ही बनी रही । भारतीय किसान वी निधनता ই अनेक कारेण है
जैसे एक मात्र भूमि पर ही जीविया के लिए निभर रहना, भाम या होटे छोटे
अनुत्यादक टुक््ड़ो में चंट जाना, भूमि से पैदाब।र का कम दहना, मेमि द्री
खन्य भोतों से कम ग्राय का होना, इत्यादि दृत्यादि । श्रायश्यक्षता इस बात को
है कि दिसानों को उचित ब्याज पर ऋण दिए जाएं | सहकारी समितियां की
संझ्या घढनी चाहिए झोर ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि उिसानो वो अल्प-
कान ते लिए लगभन ६ प्रतिशत ब्याज पर ऋण মিল জামা কই । নদ में
किसानो को ६० वपं के निए 4১1100]2012] > 18982 (077014-
(०75 से ३६ प्रतिशत ब्याज दर पर रा मिनताहै। चमार दशमंभी इम
प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए । १६४६ में गाइगिल कमदी ने सुभाष दिया
था कि प्रयेक प्रान्त में एक ऐसी संस्था स्थापित होनो चाहिए जो किसानों को
थोडे व्याज पर पग दिया करे।
किसान अपनी बस्तुथ्रों झे उचित दाम भी प्राप्त नहों कर पाते | वे ऐसे
समय में अपनी फसल बेचते है जबकि कीमतें बहुत गिरी हुई शेत्री हैं । उपभोक्ता
लय एक रुपये वा माल ररीदता है तो किसान को ८) आने मिलते हैं | बाकी
बीच ই दलान खा ज्वतें हैं। किसान अपने शञ्कछ् को मरिड्यों में नहीं ले जा
सकते क्योकि उन्हें वहाँ के दिन प्रति दिन के भाष मालूम नही रहते । यातायाद
के साधन भी नहीं है । इस सम्बन्ध में उचित सुधार होने चाहिए ! माप और
तौल निश्चित हो जानी चाहिए] यातायात के सधनो में उन्नति होनी
चाहिए | पक्तौ खत्तियों वा प्रबन्ध होना चाहिए । सहकारी समितियों की स्थापना
होनी चाहिए जिनके द्वारा किसानों को अपना माल बेचमे में सहायता मिले।
ङ्प क दशा सुधारने में पशग्युघन वी उन्नति भी आवश्यक है। হলাই
देश में पशु बहुत निबंल हैं और कृषि में काम आने वाले औजार मो प्रायः
पुराने हैं। बेशों फे निबल होने से खेतों की जुवाई गहरी नही हो पाती ।
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