लोक वित्त | Public Finance

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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20वीं शताब्दी मे कल्याणकारी राज्य (८1० 5६४८) की घारणा के उदय के परिणामस्वरूप सरकार का लोक वित्त के प्रति दृष्टिकोण पूर्णतया बदल गया और अब सरकार आर्थिक विषयो में अपना हस्तक्षेप कम करने लगी है बल्कि यह कहा जाये तो उचित होगा कि सरकार ने अपना काफी उत्तरदायित्व जनता का अपने हितो की पूर्ति हेतु उनकी चुनी हुई कम्पनियो को दे दिया है | इसके साथ ही सरकार जनता के उन सभी तथ्यो पर अपना ध्यान केन्द्रित रखती है ताकि किसी आवश्यकता के समय उनकी मदद की जा सके | लोक वित्त का महत्त्व आज एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है और निर्बाधावादी विचारधारा भृत हो चुकी है । देश मे आर्थिक नियोजन की विचारघारा के प्रारम्भ होने समाजवादी समाज एव लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल दिए जाने तथा उसका महत्त्व स्वीकार किए जाने तथा आर्थिक स्थायित्व के लिए अर्थव्यवस्था मे राज्य का हस्तक्षेप अमान्य हो जाने के कारण भी राज्य के कार्यक्षेत्र मे अविराम वृद्धि होती गई है ओर लोक वित्त का महत्त्व भी बढता गया है । लोक वित्त अव केवल मात्र बतख के पर नोचने की वह केला नहीं माना जाता जिससे वह कम से कम शोर करे (अर्थात्‌ लोक वित्त जनता से केवल कर वसूल करने की कला ही नहीं माना जाता) ।' भारत जैसे विकासशील देश भे लोक वित्त का विशेष महत्त्व है क्योकि देश के चर्हुमुखी आर्थिक विकास के लिए अर्थव्यवस्था में सरकार का हस्तक्षेप एक सीमा तकं ही होना आवश्यक है | लोक वित्त का महत्व निम्नलिखित विन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है- (क) आर्थिक क्षेत्र मे महत्त्व 011097000৩1) 78007001)0 51010) राज्य की आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि के साथ लोक वित्त का महत्त्व बढता जा रहा है | सरकार देश की आर्थिक स्थिति को नियमित और नियन्त्रित करती है तथा सरकार के इस कार्य मे लोक वित्त एक महत्त्वपूर्ण अस्त्र का कार्य करता है | फिण्डले शिराज के शब्दों में--- राज्य की बढती हुई क्रियाओं के लिए वित्त की आवश्यकता पडती है और इस वित्त को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं पर सतर्कता से व्यय करना पडता है । यह सब लोक वित्त के सिद्धान्तो की सहायता से ही किया जा सकता है। भारत जैसे विकासशील देश मे जहाँ सदिधान मे समाजवादी अर्थष्यवस्था को स्थापित करने तथा कल्याणकारी रा्य की स्थापना करने का सकल्प लिया गया है लोक वित्त का विशेष महत्त्व है 1 लोक वित्त के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है-.. 1, आर्थिक नियोजन मे महत्त्व--लोक वित्त देश के योजनाबद्ध आर्थिक विकास मे बहुमूल्य सहायता प्रदान करता है | आर्थिक नियोजन की सफलता लोक वित्त की उचित ओर प्रभावी व्यवस्था पर निर्भर करती है | आर्थिक नियोजन के लिए बडी मात्रा मे ससाघन जुटाने अवश्यक होते है ओर फिर प्राथमिकताओं के अनुरूप उनको विभिन्न क्षेत्रो मे प्रभावित करना होता है । यह कार्य पूर्ण रूप से लोक वित्त की कुशल प्रणाली पर ही निर्भर है | आर्थिक नियोजन केवल भौतिक नियोजन ही नही होता यह वित्तीय नियोजन होता है ओर वित्तीय नियोजन की सफलता उचित राजकोषीय नीतियों पर निर्भर करती है।* भारत ने अपने आर्थिक विकास के लिए आर्थिक नियोजन का मार्ग अपनाया है | आठ पचवर्षीय योजनाएँ समाप्त हो चुकी है | नवीं योजना बनाई गई किन्तु वर्ष 1991 मे केन्द्र मे नई सरकार सत्तारूढ हुई । उसने आठवीं योजना वर्ष 1992 से लागू करने का निर्णय लिया तब से वर्ष 1995 96 तक वार्षिक योजना ही बनाई गई । हमारी योजनाओं की सफलता सरकार की लोक वित्त की नीतियो (राजकोषीय नीतियो) पर निर्भर है योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक धनराशि करो दारा प्राप्त की जाती है ओर इसी धनराशि स्ते देश की परियोजनाओं को क्रियान्वित किया जाता है यदि आय ओर व्यय की व्यवस्था सही नहीं हो तो हमारा आर्थिक नियोजन सफल नहीं हो सकता । 2. पूँजी-निर्माण मे महत्त्व--प्रख्यात अर्थशास्त्री नर्क्स (भ७८६८) ने लिखा है--- पूँजी निर्माण की समस्या के समाधान मे लोक वित्त का महत्त्वपूर्ण स्थान है । लोक वित्त की उचित नीति द्वारा पूँजी-निर्माण को प्रोत्साहन मिलता है ) इस नीति के अनेक पहलू हो सकते है यथा--एूँजी-विनियोजन में निश्चित अवधि के लिए करो की छूट देना दीर्घकालीन बचत तथा जीवन-बीमा प्रीमियम को आयकर से मुक्त करना नई कम्पनी के अशो के विक्रय को प्रोत्साहन देने के लिए एक निश्चित अवधि तक 13 श््डले दन्दच् {व अग्कल वही पृ 18




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