श्रीहरिश्चन्द्रकला | Shriharischandrakala

Shriharischandrakala by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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লন । टण्व काव्य । ৬ नाटक शब्द का अर्थ नट लोगों को क्रिया । नट कहते हैं विद्या के प्रभाव से अपना वा किसी वस्तु के खझूप का फेर देना | वा खय॑ दृष्टि रोचन के अर्थ फिरता। नाटक में पाचगण अपना खरूप परिवत्तन करव राजा- दिक का खरूप धारण करती हैं वा वेशविन्यास के पयात्‌ रंगभूमि में নদী चाय साधन के हेतु फिरते हैं। काव्य दो प्रकार के हैं दृश्य और यब्य 1. दृश्य काव्य बच है जो कवि की वाणी-को-डस के रदसंगत आशय और चावभाव सच्चित. प्रध्यक्ष दिखला. दे। जेपता काखिदास ने शकुब्तला में ख्रमर के आने पर शकुन्तला का सूधी चितवन से कटाक्षों का फेरना जो लिखा है उस को प्रथम चित्रपटी द्वारा उप्त ख्खान का, भक्ुन्तला वेश सब्जित स्त्री धोरा उसके रूप यौवन और वनोचित शुगार क्षा, उस के नेत्र सिर खस्तरवानादि हारा उसके मंगमंगी प्रौर द्धावमाव का, तथा कवि कथित वाणी के उसो के सुख से कथन घारा काव्य का, दर्शकों कै चित्त पर खचित कम नेना हो हश्यकाव्यत है । यदि चव्य काव्य ह ৮ | हि भाग को भांति एक अंक में । इस में दो पुरुष आकार बात कर मकते हैं ओर शपनो वार्चा में विविध भाव द्वारा किसी का प्रेस লীন बरेंगे किन्तु इंसाते जाय॑ंगे ॥ ( उदाहरण नहीं ) ॥ রা ` -“ + + उपवन आदि की प्रतिच्छाया शास छाति कषत १ । ও हे। इसीका नामान्तर अरन्तःपटी वा चित्रप ९) आशी: नाटक में । जो आशिर्वाद कहा जाय | यछ 7 कहा रिव्‌ श्मिं्टा पत्युवचुमताभव? 2७25 | | प्रकरी नायकस्य स्ान्नाटकोय फननान्तरभं 1 २) गुणाख्यानं विलोभनं ` यथा वेणीसंहार में 'नाथ कि दुककरं तुए पर रकी ১ सम्फेटो ५ রি र भा्यम्‌ यथा वैशीसंहार्‌ भं राजा-अरे मरुत्त न्दितमप्यातक्म न्ञाघयस्सि । ৮




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