भागवत दर्शन खंड 73 | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 73 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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६
{ श)
एकवार धंमेराज युधिष्ठिर को कणं ने बहुत धविक व्यथितः
किया । धर्मंरोज घबड़ा गये अचेत हो गये । तभी श्रर्जुन को लिये
हुए श्री कृष्ण जी अपना रथ लेकर आ गये'। धर्मराज को भग-
वानु ने डेरे पर भेज दिया और भर्जुन कर्ण से युद्ध करने लगे!
भगवान ने अर्जुन से कहा--“अर्जुन ! घर्मराज बड़े मर्माहत
हो गये थे, पता नही उनको मूर्छा जगी या नहीं । चलो, पहिलेः
चलकर धर्मराज को देख झावें, तब फिर कर्ण से युद्ध करेगे 1“
भगवात की इच्छानुसार अर्जुन धमे राज युधिष्ठिर के क्षिविर
में पहुँचे | तब तक चिकित्सकों के झथक परिश्रम से धमेराज
के शरीर से बाण निकाले जा चुके थे, उनके घोबों को घोकर
उनमें ओपधि लगाकर पट्टी बाँधी जा चुकी थी। धर्म राज की
मूर्छा भंग हो चुकी थी, वे चेतन्य हो चुके थे। श्री कृष्ण और
अर्जुन को प्रसन्न मृद्रा मे भ्रपते समीप मति देखकर धमराज ते,
समझा वह दुष्ट सूत पुत्र अवश्य हो भर्जुव के वाणों से मर कर
प्ररलोक बासी बन चुका है, इसोलिये दोनों का बड़े ही स्नेह से'
स्वागत करते हुए धर्मराज बोले--'बड़े सोभाग्य की बात हैं
कि मैं तुम दोनों को कर्ण को मारकर भी सकुशल लोठा हुआ
देख रहा हैं 1 उस सूत पूत्र ने आज मुझे अत्यन्त ही व्यथित
किया। ভন एक मात्र मेरें हृदय का शूल था। उसी से मुझे,
सबसे अधिक भय था. । वनवास में भो मैं उसी का स्मरण करके.
भाहँ भरा करता था । दुर्योवन उसी के वल भरोसे इतवी उछल-
कूंद रिया करता था। तुम लोगो ने आज मेरे हृदय के काँटे को
निकाल फेंदा है। आज में अंत्यविक प्रसन्न है । वह सूत पुत्र बड़ा
भारी बली या। श्री कृष्ण की सहायता बिना दूसरा-कोई उसे
# भार ही नहीं सकता या 1.वह दुष्द बड़ी कठिनाई से मरा होगा ?
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