नीतिशास्त्र | Nitishastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न न अर्थ अन्तर्बोधकी उपर्युक्त परिमाषाओंकी सीमाएँ--सहजशान- वादके अनुसार अन्तबोधका अर्थ | अध्याय १८ . सहजज्ञानवाद परिदोष पृष्ठ ४१६-४३८ सहजन्ञानवादकी शाखाएँ दार्शनिक और रूढ़िवादी शाखाएँ दोनोंमें मौलिक एकता है पूर्णतावादी सहजश्ञानवाद सदजज्ञानवाद--हॉब्सकी आलो- चनाके रूपमें दो रूप--बौद्धिक नैतिक बोध सहजज्ञानवाद ह्यूमकी आलोचनाक रूपमें । आलोचना बिना ध्येयकी धारणाके आस्तरिक नियम अपूर्ण सहजज्ञान- वादका व्यापक और संकीर्ण अर्थ अन्तबोंध पर विश्वासॉंका प्रमाव अन्तबाघके स्वरूपकी श्रान्तिपूर्ण व्याख्या बुद्धि और मावनाका देत परिभाषामें सुधार अन्तबोधकी सार्वमोमिकता सन्देहप्रद है विकासवाद और सहजशानवाद १४ उन्तर्त॑थ्यशून्य अन्तबाँघ पूर्णतावादकी सहजश्ञानवादकों देन महत्वपूर्ण देन--नैतिकताका निरपेक्ष रूप | अध्याय १९ सदजज्ञानवाद परिदरोष पु ४३९-४८७ कुछ महत्वपूर्ण सदजज्ञानवादी बुद्धिवादी सहजन्ञानवाद-परिचय व कडवबथ नेतिक विभक्तियाँ शाश्वत हैं प्लेटोका प्रभाव वैज्ञानिक और नैतिक सत्योंका सादश्य अन्तर्बोध और शुभ आवरण | कस्चरलेंड स्व हितका सिद्धान्त सर्वहितके सिद्धान्तकों सिद्ध करमेमें अस- मर्थ सामान्य नैतिकताका समर्थन |




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