भारतीय कविता | Bharatiy Kavita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
631
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)असमिया
चैत्र जाते जाते
जीवन के पत्र में
बहुत चैत्र आते हैं
तप्त शास से
मरण झरकर
चैत्र सर्वदा रहता है ।
हमारी वसुमती एक आग है।
उससे छाई हुई
घुआँ उठ-उठकर
जला हुआ जंगल उड़ाकर
अंगार के ख़ास लेकर
वफ़ान आते हैं
सूखे खेत में हँसते हैं खिलखिलाकर
व्यस्त, उन्मत्त, माताल ।
चैत्र की सन्ध्या में छाये, भस्म लगे हुए
हम संन्यासी है
मुक्ति-पागल हैं
(राजपथ की अलेख घूल-मिट्टी)
हम राते वितते है
जीवन की नीरसता के वीच में
तप्तता के वीच
पत्ते झरते हैं-पत्ते झरकर गिरते हैं
चैत्र जाते-जाते
मेबेली ! लता प्रस्कुटित होगी |
কি थमियचर गें ५८ =
चरण गोहा३
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