भारतीय कविता | Bharatiy Kavita

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Bharatiy Kavita by चक्रेश्वर भट्टाचार्य - Chakreshvar Bhattacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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असमिया चैत्र जाते जाते जीवन के पत्र में बहुत चैत्र आते हैं तप्त शास से मरण झरकर चैत्र सर्वदा रहता है । हमारी वसुमती एक आग है। उससे छाई हुई घुआँ उठ-उठकर जला हुआ जंगल उड़ाकर अंगार के ख़ास लेकर वफ़ान आते हैं सूखे खेत में हँसते हैं खिलखिलाकर व्यस्त, उन्मत्त, माताल । चैत्र की सन्ध्या में छाये, भस्म लगे हुए हम संन्यासी है मुक्ति-पागल हैं (राजपथ की अलेख घूल-मिट्टी) हम राते वितते है जीवन की नीरसता के वीच में तप्तता के वीच पत्ते झरते हैं-पत्ते झरकर गिरते हैं चैत्र जाते-जाते मेबेली ! लता प्रस्कुटित होगी | কি थमियचर गें ५८ = चरण गोहा३




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