सत्य और स्वतन्त्रता के उपासक | Saty Aur Svatantrata Ke Upasak

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Saty Aur Svatantrata Ke Upasak by गुलाब राय - Gulab Raay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ पाँच ~~ ~ ~~~ =“ ~> ~~ ~ *+-* ~~ -~ তি শা টিলা পি ~ ~ ~~ ~~~ -<~ --+=~-----~ ~ किक कुं दिनों के श्रनन्तर गोपा के गर्भ से पुत्र उत्पन्न हुआ । कुमार सिद्धार्थ पितृ-ऋण से मुक्त हो गए | सारे राज्य में हृर्षोत्सव को धारा बह रहो थी ; किन्तु कुमार का ह्वदय संसार के दुख से दुखी था। उन्हें रात्रि में निद्रा नहीं आई | णह में अपनी सुख-निद्रा मग्न स्त्री तथा नवजात शिशु का दर्शन करने के लिए भीतर राजभवन में प्रविष्ट हुए। क्षण मर में संसार के अन्तिम बन्धन के ऊपर विजय लाभ पाकर वे घर से बाहर आए । अपने अश्व को सजा कर, अपने सारयी छुंदक को साथ लेकर, अध रात्रि की निस्तब्धता में, कुमार ने णह-त्याग किया । इस अन्तिम विदा का पं० रामचन्द्र शुक्ल ने बुद्ध-चरित्र में, बहुत ही उत्तम वर्णन किया है । “त्यागत हों में श्राज आपनो यह योवन धन, राजपाट, सुख भोग, बन्धु बान्धव श्रौ परिजनः सब सौ बहि भुजपाश प्रिये! तव तजत मनोहर तजिबो जाको या जग में है सव सां दुष्कर । ৮ ९ ৫ है जो फल लहलहे प्रेम को प्रथम हमारे-- ये देखन हित ताहि रहौ तो धेयं सिधारे । हे पत्नी, शिशु, पिता और मेरे प्रिय पुरजन ! कछुक दिवस सहि लेहु दुख जो परि है या छुन । जासों निर्मल ज्योति जगे सो अभ्रति उजियारी, ই এল को मार्ग सकल जग के नरनारी । अब यह दृढ़ संकल्प ; आज सब तजि मै जहौ, जब लों मिलि हैं नाहि तत्व सो, नहि फिरे ऐहें । कपिलवस्तु से छः योजन पर अनोभा नदी के तट पर पहुँच कुमार घोड़े से उतर पढ़ श्रौर अपने वस्त्राभूषण छुन्दक को सौंप, उसे कपिल বহন लौटने की आज्ञा दी । छुन्दक की स्थिति सुमन्‍्त से कुछ खराब ही




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