गरुड़ध्वज | Garud Dhvaj

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Garud Dhvaj by श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र -Shri Lakshminarayan Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न न खामरा हाँ कई बार और वहाँ तो बड़ा ज॑जाल है दर 0 (न ..... बह सारा जंजाल बहद्थ शोर उसके पूर्वजों ने खड़ा किया 1. रे भर प्रजा का घन उस जंजाल में बहता रहा श्र इघर ' बैठ गया है सन में किसी दिन उन गुफाओं में जाकर आग लगा दूँगा । (कोष से ददक कर ) वहाँ बह काले पतवत सा एक बुड्ढा है . जो रात दिन मदिरा में चूर कबतर सी आँख लेकर ड्म, ग्डिम ..... विडिमू, डम्‌ू बोलता रहता के नाम पर बस उसकी जीभ चलती रहती है । मुश्डित केश. किशोर '्ोर किशोदियाँ ज दि देखिये वहीं छी”””इन सब ने लज्जा भी छोड़ दिया है । किन्तु तथागत तो. सारी माया मोह छोड़कर, ख्री और पुत्र _ (उसका दाथ पकड़ कर ) तुम्हें तीन दिन हल्दी लगी। .. वहाँ व जो अमण हैं...




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