साधना अमर प्रतीक | Sadhna Amar Pratik

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Book Image : साधना अमर प्रतीक  - Sadhna Amar Pratik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २१ ) आनन्द' आदि २० के लगभग स्वतन्त्र पुस्तकों का निर्माण किया | जहाँ आप साहित्पिक क्षेत्र में प्रगतिशील रहे हैँ वहाँ आप सामाजिक क्षेत्र में भी बड़े प्रयत्नशील रहे हैं। फिललोर और बहराम आदि अमेकों नये क्षेत्र खोले और' वहाँ पर जेनधर्म का ध्वज लहराया, वहाँ पर बने विशाल जेन स्थानक वहाँ की जन-जागृति के समुज्ज्वल प्रतीक हैं । राहों के श्रद्धा केन्र श्रद्धा के केन्द्र परिपूत-चरण आचार्य सम्राट पुज्यश्री आत्माराम জী महाराज की जन्म-भूमि राहों ज॑से पिछड़े नगर में पूज्य श्री की पुण्यस्मृति में आचार्य श्री आत्माराम जैन फ्री डिस्पेंसरो” को चालू कराना और इसके लिए स्थायी सम्पत्ति को एकन्रित करने के लिए समाज को आदर्श प्रेरणा प्रदान करके उसको अपने पाँव पर खड़ा कर देना, वहीं पर “आचार्य श्री आत्माराम जन सिलाई स्कूल” जैसी शिक्षण संस्था की स्थापना करना तथा “आचार्य श्री आत्माराम जेन सेवा सदन का निर्माण करके समाज के असहाय छात्रों, विधवाओं तथा अभावग्रस्त लोगों को सहायता देने की योजना बनाना श्रद्धेय श्री ज्ञानमुनि जी महाराज की ही अपनी विशेषता है, जिसके लिए समाज इनका सदा कृतज्ञ रहेगा । राहों निवासियों के हृदय में तो महाराज श्री जी के लिए ऐसी आस्था, तड़प और प्रेम है जिसे लेखनी अक्षरों की सीमित रेखाओं से अभिव्यक्त नहीं कर सकती । अमी-अभी ४ फरवरी १६७३ को आचायं सम्राट्‌ पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज की पुण्यतिथि महोत्सव पर राहों की जेनेतर जनता ने एस० एस ० जेन सभाराहों तथा आचार्य श्री आत्मारास जैन फ्री डिस्पैसरी कमेटी ने महाराज श्री की अविस्मरणीय सेवाओं और उपकारों पर अपनी क्ृतज्ञता प्रकट करने के लिए अत्यन्त श्रद्धा भक्ति के साथ एक प्रस्ताव पारित करके श्रद्धेय गुरुदेव श्री ज्ञानमुनि जी महाराज को-- 'पंजावकेतरी' जैनभुषण”' और “व्याह्यनदिवाकर' की महान उपाधियों से अलंकृत करके इनकी समाज सेवाओं को सम्मानित करने का बुद्धिशुद्ध प्रयास किया है । पंजाघ-केसरी केसरीतिह्‌ का नामदहै। सिंह प्तदा निर्भीक ओौर निभेय रहता है} डर, खौफ, भय, भीति को कभी निकट नहीं भाने देता 1 सिहच्व ओौर भीति कमी एक आसन पर नहीं बैठ सकते । दिन और रात का जैसे मेल नहीं, वैसे सिंहत्व और डर में कभी भी मेल नहीं हो सकता । हमारे श्रद्धेय गुरुदेव श्री ज्ञानमूनि जौ महाराज सचमुच पंजावकेसरी हँ 1 केसरी की माति सदा निर्म रहते _




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