बच्चन व्यक्तित्व एयर कवित्व | Bacchan - Vyaktitv Aur Kavitv

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Bacchan - Vyaktitv Aur Kavitv by जीवन प्रकाश जोशी - Jeevan Prakash Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मधुर स्मृति संजोये है । >< >< > । यों पिछले बारह वर्षो से बराबर मैं बच्चन जी के सीधे सम्पर्क में रहा हूँ । बारह वर्ष किसी विशेष प्रकार के व्यक्ति को समभने के लिये कम नहीं होते । और उस' श्रव- स्था में जबकि सम्पर्क कुछ भाव और विचारमय भी हो । वेसे व्यक्ति विशेष को बाहर-भीतर से पूर्णतः: समझ लेते का दावा तो जायद कोई नहीं कर सकता । स्वयं व्यक्ति ही अपने को ईमानदारी से कितना समभता है ? पर इस तासमभी में वह महान रचना भी करता है और आविष्कार भी । समभने का प्रयास भी पूणतः समभ लेने के भूठे दावे से कहीं भ्रच्छा कषा जाना चाहिये । मैंने बच्चन' जी को इन बारह वर्षो में स्वाभाव-संस्कार की दृष्टि से जैसा देखा-समभा है वही बता रहा हूँ--न कम न अ्रधिक ! > >< >< बच्चन जी के व्यक्तित्व में मैंने महानता नाम की कोई चीज़ नहीं देखी । मैंने तो उनमें उसी प्रकार के भाव-स्वभाव-संस्कार के लक्षणों-उपलक्षणों को दबते-उभरते देखा है जिनको में अपने निकट के व्यवहारिक व्यक्तियों में देखता हूं । श्रौर हो सकता है लोग मुभमें भी उन्हें पाते हों; आप में, सबमें भी ! लेकिन बच्चन जी के व्यक्तित्व की एक खासियत मैंने यह देखी है कि वहां कहीं ऐसा कुछ नहीं है जो अ्रसलियत के पीछे खूखार बनावट को शो दे रहा हो । यह बिल्कुल सच है कि बच्चन का व्यक्तित्व नम्नता और अवकखड़ता के ताने-बाने से निर्मित है। उनके स्वभाव में स्वाभिमान इतने ऊँचे क़द का नजर आता है कि उनसे मिलकर कुछ की यह भी धारणा होती है, हो सकती है, कि उन्हें बहुत अहंकार है। इसके साथ ही जो उनके निकट और निकटतर प्राते चले जाते हँ वे यहु भी महसूस करते जाते हैं कि उनमें सरलता भी इतनी ই कि जो केवल स्नेह के दो आखरों के मोल पर आसानी से उपलब्ध हो सकती है--- “तुम हृदय का द्वार खोलो, श्रौर जिह्ला, कंठ, ताल के नहीं तुम प्राख केदो बोल बोलो; . (आरती और अंगारे गीत ७२) बच्चन बहुत अ्रक्‍्खड़ हैं । वे टूट सकते हैं ঘহ भुक नहीं सकते-- भुकी हुई अभिमानी गर्दन, बंधे हाथ, नत-निष्प्रभ लोखन ! यहु मनुष्य का चित्र नहीं ह पश्य का है, रे कायर ! प्राथंना सतकर, भतकर, सतकर ! (एकांत संगीत:गीत ९२) या-- स्वगं भी मुशूको श्रस्वीफार,




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