मंडलप्रभात | Mandalprabhat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अहिसा मह्नतप्रभात २९.७.३० सत्यकी, अहिंसा की राह जितनी सीधी है उतनी ही तद्ग भी है; खांडे की घारपर चलने के समान है | नट बड़ी सावधानी से जिस डोर पर.चल सकता है सत्य और अहिंसा की डोर उससे भी पतली है। ज़रा चूके कि आये नीचे घमसे | पहनपकू की साधना से. ही उसके दशेन होते हैं । लेकिन संत्य के सम्पूर्ण दशन तो इस देह से असम्भव हैं । उसकी केवल कल्पना भर की जा सकती है। णिक देह द्वारा शाश्वत यमं का साक्षात्कार सम्मव नहों होता। इसलिए अन्त में &




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