निबन्ध - रत्नमाला | Nibandh - Ratnamala
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पविन्नता ।
স্পা
नव-जीवन छा “पविन्रता! एक
बडा सारी मुख्य भद्ध है । धमे-अथ-
काम-मोक्च सवङ़े साधन मे प्रयत्न
इसी का आदर करना पड़ता है।
अतः इस पवित्रता पर दमारी खुल
070४ ७! बहिनों को कुछ विशेष विचार करना
चाहिए। हमारे जैनाचार्यों ने प्रत्येक नियम ऐसा निर्धा
रित किया है जिसमें पविन्न साव कूट कट कर भरे हुए हैं. ।
परन्तु चत्तमान में हम लोगों ने केवछ स्नान, केपन,
साबुन ङगाना [इत्यादि धातों में ही इस पविन्नता-देवी
को दोष कर रक्ला है। यद्द बड़ी घूखेता है। पवि-
रता यथाथे में कुछ और चस्तु है--मनुष्य के परत्यंक
चर्ताव मे नियमानुकुलता और खतदाचरण ही पवित्रता
की जड़ है। पापरहित सदुगुण-खहित परिणमन का
नाम ही पवित्रता है, यद तीन मार्गों সন্তু में प्रवेश
करती है। सन द्वारा, वचन दवार, कम द्वारा । के
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