ज्योतिर्विनोद | Jyotirvinod
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
269
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
३३,४०,००,००,००० घन काोस हुआ । ( जितना स्थान कोई
वस्तु घेरती है उसे उसका घनफल कहते हैं । )
इसक आकार के संबंध में प्राचीन काल से विवाद चला
आता है। बहुत से लोग इसको चिपटी समभते थे ।.. परंतु
प्राचीन काल के विद्वानों ने भी थोड़े से विचार के उपरांत यह
निश्चय कर लिया था कि यह चिपटी नहीं प्रत्युत गोल है।
“भूगोलः शब्द ही इस बात का प्रमाण है! भूगोल कौ प्रार-
भिक पुस्तकों में प्रथिवी की गोलाई के अनेक प्रमाण दिए रहते
हैं। अब आजकल सिवा अशिक्षित पुरुषों के और कोई इसे
चिपटी नहीं कहता । রা
परंतु गोलाई क प्रकार की होती है ! गेंद भी गोल हाता
है, अंडा भी गोल होता है, नारंगी भी गोल होती है ।. प्रथ्वी
के आकार में किस प्रकार की गोलाई है यह विषय अत्यंत गहन
है पर इतना निश्चय है कि प्रथ्वी गेंद के समान गोल नहीं
है, प्रत्युत कुछ अंडगोलाकार नारंगी के समान है और अपने उत्तर
तथा दक्षिणतम स्थानों पर जिनको उत्तरीय और दक्षिणीय
ध्रव कहते हैं, कुछ दबी हुई सी है। इसका कारण ,भो स्पष्ट
है! यदि हम गीली मिट्टी का गोल गेंद बनाकर एक धुरे कं
उपर घुमा ता धुरे के पास गेंद कुछ चपटा हो जायगा। ठीक
यहो दशा हमारी प्रथ्वी की है। पहले जब यह जलती थी तब
उतनी कड़ी न थी और इसी लिये घूमते घूमते पध्रुवों के पास
चिपटी हो गई है ।
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