हिन्दीकाव्य में प्रकृति - चित्रण | Hindi Kavya Men Prakriti Chitran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
506
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भानव और प्रकृति ५
उपहार दिया | च मे श्रपसी नेद्धिका के प्रधार से पनाग्धकार का श्रवहरण
किया, गस्त जीवन् का साधम बन गया और ,परिन्री ने इन राभी को रनेह
पूर्वक अपनी श्रेक में धारण और वहन किया | वह प्रकृति के विभिन्न अंभरों
पै रुन मंगलमय वर्यौ दवाय ह्तना श्रमिक प्रभावित हुआ कि उसने इन
सभी मँ देवत्य की प्रतिष्ठा क्ली श्रीर् करमशः दनक इन्द्र, सूय, वरुण, चन्र,
वाथु श्रीर पृथ्वी आदि दिव्य गास देकर गुण गान कर्ते लगा | उसने प्रथम
इन्द्र की महती शक्ति कॉ--
यः प्रथि्यी व्यथमानामह' हु
यपयौः पवतान्प्रकपितौः शअरश्म्णात् |
यो श्रन्तरित्त विममे वरीयो
यो द्यामस्त॑श्नाता जनास इन्द्र: | २॥ १
( है मनुष्यो जिसने चल पर्वतों को झ्रचल करके कम्पित प्रथ्वी को स्थिर
किया, जितने आकाश को सीमित कर गगन मंडल को संभाला | बही
इन्द्र है। )
आदि शब्दों में बन करते हुए मंगल कामना की कि---
ये सु न्धते पचते दुध आ चि---
द्वाज' दंदपि_ स किला सि सत्य: |
बय॑ ते' इन्द्र विश्वह्व प्रियास।
सुवीरासो विदथमा वदेम ॥६५॥२
[ है शक्तिशाली देवता तुम अपने उपाराक को श्रमूल्य भेंट प्रदान करते
हो, तुभ वास्तव में सत्य स्वरूप हो, है इन्द्र | ऐसा बर दो कि হল सवदा
अपने बालकों सहित तुम्हारे प्रिय रहें और तुम्हारा शुर्य गान करते रहे |]
इसी प्रकार पोपक জু.
पूपन्तव॑ मरते बस ने रिप्येम कर्दाचन ।
स्तोतारतत्त इह स्मति ॥६॥३
( है पृषन् ! देखो हम तुम्हारे उपासक हैं, ऐसी झृपा करो कि हम तुम्हारे
राज्य में निभय निधारा कर सके । )
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