जैनेन्द्र: व्यक्तित्व और कृतित्व | Jainendra Vyaktitv Aur Krititv
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
277
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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महात्मा भगवान् दीन के विचार उनके लेख “बाल जनेन्द्र” में प्रस्तुत किये हैं ।
उसे पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि उनके पिता जी की मृत्यु उनके जन्म के दो वर्ष
बाद ही हो गई थी भर उनके जीवन-निर्माण मे उनको माता का ही प्रमुख
प्रभाव रहा ।
जनेन्द्र-परिवार का परिचय देते हुए महात्मा जी ने एक स्थान पर लिखा
है कि---'रामदेवी बाई के कुल मिलाकर छ: बच्चे हुए । तीन छोटी उम्र में चल
बसे और तीन श्राज तक जीवित हैं । दोनों लड़कियाँ बड़ी हैं श्रौर लडफा उनसे
छोटा । वही छोटा लड़का जनेन्द्रकुमार के नाम से प्रसिद्ध है और समाज उसे ग्रच्छी
तरह जानता है।
१६०७ में श्रीमती रामदेवी बाई के पतिदेव का देहान्त हो जाने पर जे नेन्द्र
का लालन-पालन महात्मा जी की देख-रेख में होने लगा। जेनेद्र की प्रारम्भिक
शिक्षा ब्रह्मचारी श्राश्रमजंन गुरुकुल में हुई । यहाँ प्रसंग-वश इस बात का भी उल्लेख
कर देना सम्भवतः अ्रनुचित न होगा कि इस साहित्यकोर का नाम भ्रानन्दीलाल
से ज॑नेन्द्र होना गुरुकुल की ही देन है । गुरुकुल बन्दहोजानेपर जने जीने
प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में मेद्रिक परीक्षा पंजाब यूनीवर्सिटी से उत्तीर्ण की श्रौर
इन्टरमीजिएट की पढ़ाई के लिए वे बनारस विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हो गए, लेकिन
राष्ट्रीय आ्रान्दोलन के प्रारम्भ होने पर १६२०-२१ में वे पढ़ाई छोड़कर दिल्ली भ्रा
गए । कुल मिलाकर वे तीन वार जैल गए ।
पहली बार जेल से छूटने के बाद जनेन्द्र ने दिल्ली में नौकरी की तलाश की,
पर उन्हें कोई भी स्थान नहीं मिल पाया । जेल जाने से पूर्व अपनी माताजी की
झ्राथिक सहायता में जो 'फरनीचर' का काम उन्होंने शुरु किया था, वह भी छूट गया ।
कई बार मैं एकान््त के क्षरों में सोचता हूँ कि यदि जैनेन्द्र जी को उस समय कोई
नौकरी मिल जाती या उनका “बिज़नेस चल निकला होता, तो सम्भवतः
हस समस्या-मूलक निर््रान्त प्रहरी से हिन्दी-साहिव्य सदा-मदाकेलिएही वंचित रह्
जाता । |
गाँधी, शरद् और टालस्टाय की कृतियों से प्रभावित इस निबन्धकार,
कहानीकार, उपन्यासकार तथा दाशशंनिक के जीवन की कुछेक घटनाओं का विवेचन
करने से यह बात स्पप्ट हो जाती है कि जनेन्द्र जी मानव के निर्माण के लिए प्रारम्भ
से ही निरन्तर यत्नशील रहे हैं । उन्होंने स्वयं संघं कर सत्य के प्रयोगों द्वारा দল
जीवन को श्रधिक साथंक और श्रन्य व्यक्तियों के लिए श्रधिकं उपयोगी बनाने की ह्र
क्षण भरसक चेष्टा की है।
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