सीता | Sita
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
211
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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नाम - ईश्वरी प्रसाद
जन्म - 29.12.1938,
गाँव - टेरो पाकलमेड़ी, बेड़ो, राँची
परिजन - माता-फगुनी देवी, पिता- दुखी महतो, पत्नी- दुलारी देवी
शिक्षा - मैट्रिक; बालकृष्णा उच्च विद्यालय, राँची, 1952
आई० ए०; संत जेवियर कालेज, रॉची, 1954-1955
बी० ए०; संत कोलम्बस कालेज, हजारीबाग, 1956-1957
व्यवसाय - शिक्षक; बेड़ो उच्च विद्यालय, 1958-1959, सिनी उच्च विद्यालय, 1960
पशुपालन विभाग, चाईबासा, 1961, राँची, 1962-1963 मई 1963 से एच० ई० सी०, 1992 में सहायक प्रबंधक के पद से सेवानिवृत
विशेष योगदान --
राजनीतिक -
• एच० ई० सी० ट्रेड यूनियन में सीटू और एटक का महासचिव
• अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार, चेकोस्लोवाकिया में ट्रेड
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सीत)
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यक्त समा होनेपय, ब्राह्मणक कहनेसे, णजा जनक खय
सोनेफा हल हाथमें लेऊर खेद जोतनेको तैयार हुए | उस समय
ये यह् यात भूल गये, कि “मैं क्षत्रिय हूं, राजा हं--फोई इृपफ
या टरा नदी, जो हट ভাতে ९! प्रज्ञाके कल्याणकी फामनास,
ই मानापानफौ यात् भूल, खेत ज्ोतनेकों प्रस्तुत हो गये!
ऐसा फरते हुए उनके मनमें तनिक भी छज्या या सकोच नहीं
हुआ! खेतमें पहुंचकर ज्योंदी राजाने हल घलाया, स्पॉही
आकाशर्म मेघ छा गये, किसानेके सूपते हुए प्राणोमें सजीवनी
शक्ति भर गयी और उनकी नए हुई आशा फिर हरी हो आयी |
यद् शुभलक्षण देख, राजा घढेद्मी आनन्दित हुए और हक
घचलानेकी विधि पूरी कर घर लौटनाही चाहते थें, कि उन्होंने
देसा, कि एक परम सुन्दरी वाछिका उसी सेतमें पडी हर हाथ-
पैर पदक पटककर आप ही आप खेल रही है। ऐसी छन्दस
सलोनी वालिकाको उस निर्जन भान्तमें पडी हुई देख, राजाओे आ-
ख्र्यका ठिकाना न रहा | उनके हृदयमें विस्सपफे साथ दी-साथ एक
प्रकारकी ममता उत्पन्न हो गयी और थे उस चालिंकाको गौदमें
लिये बिना न रह सफे। न जाने क्यों, उस वालिकाको गोदे
উর বাজান अङ्ग-यङ्गमे पुर काली छा गयौ, उनके हदये
हपकी अपार तस्मे उठने ट्गीं । पे सोचने लगे,--“यद् बालिका:
किसकी है ? कौन ऐसा निठुर था, जो इसे বাঁ হীন ভাত
गया १ अथवा खय रुश्मीही शरीर धारणकर घालिका रूपमें
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