प्रश्न व्याकरण सूत्र | Prashnvyakaran Sutra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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मप्र वातावरण मे प्रस्तुत सूत्र का पठन-गठन अवश्य ही जीवन को पवित्र,
स्वच्छ एवं समुज्ज्वल बनाने वाला है |
भगवान महावीर का शान्तिप्रद प्रवचन सरल हिन्दी भाषा भे ओर
अन्यान्य भापाओं मे अनुवादित होकर ससार मे फेले और भव्य प्राणियों
का कल्याण करे, इसी सद्धभावना को लेकर इसका अनुवाद किया गया
हैं। किसी खास प्रतिष्ठा या पाडित्य प्रदर्शन के उद्दंश्य से यह नहीं
हुआ ह । मै कोई प्राकृत, सम्कृत का विद्वान नहीं हूँ और न हिन्दी ही
का विशेषज्ञ हूँ | अत आप मेरी भाषा या अनुवाद शेली को न देख
कर मूल भावों की ओर द्वी लक्ष कीजिये जो कि भगवान् महावीर की
ओर से पेतृक सम्पति के रूप में मिले हैं | उक्त सून्न के अव्ययन, करने
वाले को भावुकता के साथ साथ प्रत्येक शब्द मे अनन्त-अनन्त जान
निधि के दर्शन होंगे।
आगम साहित्य अगाध और महान् दै | बड़े-बडे दिग्गज विद्वान् भी
इसे भली भाँति पार नहीं कर सकते | फिर भला मेरा प्रयास तो अति ही
अल्प है | अम्तु इस अनुवाद में मे कहाँ तक सफल हुआ ह इसका
उत्तर में तो पाठकों पर ही छोडता हूँ।
आगम साहित्य के अध्ययन में सबसे बडी कठिनता यह है कि मिन्न
भिन्न प्रतियों में शब्दों के श्र्थ भी भिन्न भिन्न प्राप्त होते हैं | उदाहरणार्थ
यथा (१) अण्णगिलारहिं--शब्द के चार अर्थ देखने में आये हैं। (2)
वासी आहार (8) अ्रजात कुल के घरों में से आह्यर लेने वाले (५)
जिवारे गिलाण पामे आहार बिना तिवारे आहार करे (10) एक स्मरण
नहीं रहा | ( २) अचियत--शब्द का अर्थ अप्रतीत कारी किया दै ।
यही शब्द घरों के विषय मे और चद्दर चोलपट्टक आदि के विषय में भी
आया है | अब विचारणीय विषय यह दै कि चदर आदि अप्रतीतकारी
कैसे हो सकते हैं ? अगर अचियत शब्द का अप्रिय श्रं करे तो युक्ति
युक्त हो सकता है | खैर में कोई आगम साहित्य के रहस्य का भर्मश
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