अनुसधान का व्यावहारिक स्वरूप | Practical aspect of research

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तप्यानुसभान श्रौर तस्मान्यान ४४ पूवे वाला इम साघ्य वा भी साधन बनाकर पगम स्रष्टा की सरोज मर्था प्रास्मा परमात्मा वी एकता वे अनुभव को साध्य रूप म प्राप्त वरन के लिए प्रवत्त हो । यदि लेखक का -यक्तित्व दशन भ्र्थात प्रनुमधाता प्रौर लक कौ प्राप्मक्यता साघ्यदटैतो प्रमात्मक्य वोध उसवा परम सा*य । पर तु कभी कभी तत्व के महत्व दने से तथ्य वमजोर पड जाता है। यथा “ग्राचाय रामचद्र जी घुक्‍्ल का आलाचना-पद्धति ম तत्वदशन वे' प्रति इतना प्रवत आग्रह था कि व तथ्या वी अधिक चिता नहीं बरते थे। उनके इतिहास” तथा भूमिकाग्रा एव सद्धाततिवा निबाधा में तथ्याधार स्पष्टत दुबल है। झात्मा का अनुसधान ही उनका घ्यय रहा है। तथ्या व संकलन और सापियकी पद्धति ने भ्रवलम्बन के प्रति उतकी रुचि नही শী |? सत्योपनब्धि की दा विधिया तथ्यानुसधान की कमिव प्रत्निया के माध्यम स॑ सत्योपलब्धि बी दा जिधियाँ हैं--दशन झौर विनान । दशम--स्वरूप से दर्शन श्र तरग और आध्यात्मिक प्रद्ृति का हांम के कारण उसकी गति म॑ ऋजुता सरलता भौर त्वरा रहती है। वह लक्ष्य पर सीधी पहुँचने वाली होने 4' कारण शीक्ष परिणाम टेती है परतु उसम तथ्यात्मक' प्रभाण वा भ्रभाव रहने के. कारण राति का खटका रहता है। अनुसधाता म विवेक और तठस्थता का प्रभाव हो ता मान हुए सत्य का दशन भी बहुधा विकृृत रूप मे होता है । विज्ञान--इसकी प्रवृति वहिरग और तथ्यात्मव होने के कारण उसको गति क्लिप्ट शिथिल और विलम्बित होती है। इसमे अ्रा ति की सभावना कम रहती है और ठोस भ्राघार तथा पुष्ठ प्रमाण वे' बत पर अनुसधान का काय झाग बढता है, परनु झनुसधाता तथ्य सक्लन मं इस हृद तक उलभ जाता है कि तात्तविक दष्टि वा लोप हो जाय तो आश्चय न हांगा । निष्कप रूप म॑ यही स्थापित होता है विः अनुसधाता की दष्टि दशन भौर विनान म॑ सम-वयात्मक रह, जिससे भ्रन्तद प्टि वी गति अ्रवम्द्ध न हो, शरीर की जाँच मे कहीं हृदय खो न जाय तथा हृदय की जाँच म वहीं शरीर से उसका विष्ठेद ने हों जाय । एकागी हाते पर दोनो मे प्रसगति का भय है। अनुसधान और झालोचना अनुसधान भर्थात चानवद्धि बे! जिए झनुपलध की सोज और उपलब्ध का परीक्षण, भ्र्पात लक्ष्य बाँघना निशाना लगाना । प्रालोचना याने चान को जानकारी १ भतुसधान की प्रक्रिया, स० डॉ० सावित्री सिद्दा, १०५० ^




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