भारतीय सभ्यता संस्कृति एवं धर्म | Bhartiya Sabhyata Sanskriti Evam Dharm

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Bhartiya Sabhyata Sanskriti Evam Dharm by हरविलास मिश्र - Harvilas Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हरविलास मिश्र - Harvilas Mishra

Add Infomation AboutHarvilas Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सामाजिव विवास वा इतिहास श्३ आनद देल विबास सिद्धात का ही सवश्रष्ठ समझा जाता है। यहाँ हम इसी +सिद्धात वा ঘছ্যদন वरेंग । मानन जवन के झरम्भ से ही समाज की रचता निरन्तर विकास यै फल“ स्वष्प हुई है यह स्वीकार किया जाता है । इस विकास की निम्नलिखित चार प्रमुस श्रेणियाँ मानी जाती हैं. -- (१) श्राखेट जीवन, (र) चरवाहा जीवन, (३) क्षव-जीवन तथा (४) श्रौद्योगिक जीवन । ध (१) श्रावेट-जोदन--मानव समाज के विनाम का प्रथम सोपान গার सय जीवन था । इस समय भनुष्य अपने छोटे छोटे सगठिव दलों में रहता था। ये दल फल एकत्रित बरते थे श्रीर जानवरा का शिकार करते थे और दल मे सभी नसदस्य भोजन प्राप्ति वी आवश्यकता के कारण ही साथ रहते थे | संगठन सरल घा। जो कुछ मिलकर प्राप्त करते थ. उसका बटवारा समान रूप से कर लिया जाता যা) उस समय कोई रासक, सरवार, सम्पत्ति, नियम अथवा विधान समार्यें नहीं थी । यहा तत्' कि पारिवारिक जीवन का भी कोई रूप विकसित नहीं हुम्ला था। জন वाल के जिये खाद्य सामग्री एकत्रित बरवे रखने को प्रर्वात्ति भी जाग्रत नहीं थी । जो कुछ मिल जाता था या श्राप्त करते थे उस समाप्त कर देते थे। ससार उहेँ भयावह (सत्टमय) लगता था । कभी कमी अकाल मनमारीभ्रादिमी छर सताती थौ । जीवनके श्रय श्रौर प्रम पक्ष पर॒विचार वरने का समय अर्ह नहीं मिलता था| विभि ते देखी मे विभिन नियम एवं परम्परायें थी सामान्य नियमो वा श्रस्तित्व नही था । अपन “व के सदस्यों को व्यक्तिगत रूप मे अ्धिवारों की स्वीकति नही थी ! वात सुत सम्यता और ससस्‍्कति की दृष्टि से यह समय श्रत्यन्त क्ष्टप्रद था! (२) चरवाहा जोवन--प्राखेंट जीवन मे क्रातिकारी परिवतन भूरय रूप से जानवर पालन वी धया ये दारण हुआ और इसी कारण से चरवाहा जीवन का समारभ हुप्रा। श्रत्र समाज का आकार वढने लगा दलो का विस्तार वश्च एवं जातिया मे हाव लगा क्याकि खाय समस्या अब पहले जैसी विक्ट न रहकर, प्रशु« पालन की प्रथा द्वारा अत्य ते सरल ही गई थी। इस समय झतेक पत्ली प्रथा वी ससस्‍्या का विकास ही रहा था ओर विवाह के द्वारा परिवार बी सस्या जम रही थी, जिसमे पिता उसको पत्नी सस्तान, सतान वी सतान (विज्ञप झूप से केवल पुत्र तथा पुत्र बधुएँ ओर उतवी सतान) सम्मिलित होती थीं। परिवार के अध्यक्ष को अपने सदस्या के जीवन तक पर पूण अधिकार होता था। अनेक परिवारों से दश तथा जातियाँ बनकर बडे समूह स्थापित होते थे इस प्रकार समाज का सगठत *खत्त सम्बंध पर आधारित था| इनका मुस्य व्यवसाय पशु पालन हाता था, इसलिए ই की सुरक्षा शोर अधिकार बहुत प्रधान समझा जाता था। आखेट जीवन अल সির मी यन वी र एक स्थान का चरायाह सूख जाने पर या समाप्त हो.




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now