जीना सीखिए | Jeena Seekhiy

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Jeena Seekhiy by विट्ठलदास मोदी - Vitthaldash Modi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न वर दो कि लुम झकेल कही भी श्रा-जा सबते हो तब तक तुम कया समसोगे कि तुम्हारी जिंदगी युरू हुई हैं पिस्वनाथ का आतं चमकन लगी । उसने कहां हा भैया 1 जगत मैंन उस बक्त उस वंताया नहीं पर वह जीवन का सच्चा गरम्भ नहीं होगा वह तो जीवन शुरू करने के लिए श्राद् चेतनता पे एक लहर माय वही जाएगी । एसी धरने लहरें ीवन में पैदा हाती हैं तव वही जिन्टगी शुरू परैती हू । मेरे भी जीवन मे एसी अनेक लहरें श्राई ह । बचपन वी बात है। मैं घर दे पज़दीक एव झसाड़े मे कुश्ती वाया उरता था। यह ब्रखारा एक काती मदर के म था । एक टिनमेंने देवा कि किसीने की चहारटीवारी पर गेरू हे सुन्दर सुदर भ्रद्षरो म कितने ही पद लिख दिए हैं उनम से एक यह भी था रहा होगा कमी जो हो रहा घयनत घभी सो हो रहा भ्रदनत पी उनत रहा होगा पभी 1 हुसते प्रपभ जो पथ हैं तम पर में फसते वहीं भुरभ्े पड़े रहते घुपुद जो ध्रत में हसते ही ॥ इस पथ्य मे मेरे झत्तर को कर दिया । में इसपर एफ दाशनिक की भाति विचार करने लगा कहना चाहिए एव दागनिक की तरह मैं उस वक्‍त बहुत छाटा था। वह भी मरे जीवय गुरू करने के रास्त में एक लहर थी । दूरारी लहर तय भ्राई जब मैंने धपना घर छोड़ा भ्ौर वसयत्ते जा वसा । श्रौर तीसरी तब श्रार जब मेरी पहली नौकरी छूट पई थो। उस समय हो मैं दिवतब्यविमड सा हो गया था । मैंने सोया भव घर वापस चलना चाहिए । मेरी इच्छा शोर घबराहट को देख- बर मेरी पनी ने धीर से परूछा यहा से चलना कयी चाहते हैं ? श्र




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