बाईस पारीषह | Bais Parisaha Sangrah

Bais Parisaha Sangrah by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३७ ) ध्या जोर, दरत अनेक कष्ट क्षमा खदग परकें इया भंडार भरत षरत सु साध एसे, भवेया प्रणाम करत त्रेकाल पाय परक ॥२३॥ १६ भ्रन्नानप्ररीषह कप्य । सभ्यक्‌ जान प्रमाण, होहि पनि कोय तच्छ मति । सुनहि जिनेर्वर बेल; याद नहिं रहे ह दय अति ॥ ज्ञानावरण प्रसाद, बद्धि-नहिं भ्रमरे जाकी । पूरब भव पिति बन्ध,यहां कछ चलते न ताकी ॥ इस सहत कष्ट' मुनि ज्ञानक हो हि 'परीषह प्रबजिय । तिहँ जीत प्रीति निजरुप -सो, खत शद्ध अनभव हिय ॥ २४॥ ` २० मन्ना परीषच छप्पय ॥ भन्ना बर नहिं होय, ता विधा नहिं आव प्रज्ञा बठ नहिं होय, तहाँ नहिं पढे पढव॥ ख + तलवार (र) हिय + इदय। (२३) দক়ালনুছি।




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