कर्म मार्ग | Kram Marg

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दुर्गा विनायक प्रसाद - Durga Vinayak Prasad

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मौलाना नज़ीर अहमद - Maulana Nazir Ahamad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला परिच्छेद ७ गई । लोग बहुत घचराए । सवेरा द्येते.दयोते उनको दशा एर- दम विगड़ गदे, यद्यं तक कि श्राशा भी जाती रही | एक आदसी उसी समय पड़ोसी वैद्यगज के पास दौड़ा। वैद्यनी भी संयोग-वश पूरे महापुरुष थे। न-जाने इन्हे किस गुरु ने शिक्षा दी थी । हैज्े का नाम झुनते ही उनके होश उड़ गए | डर के मारे यह हाल हुआ कि काटो त्तो बदन मे खन नही । परंतु करत क्या १ इन लोगो फे घर से पहले का कुछ ऐसा सबंध चला आता था कि बेचारे नही भी न कर सके। अत में जाना ही पड़ा | जांकर कुछ छूमंतर करके चले आए, मानो कोई पड़ोस की विधि पूरा करने आए थे। रोगी मे तो वोलने ओर बातचीत करने की भी शक्ति न थी । एक ही 'पहर की बोमारो में खाट से लग गए। खि्याँ जो छुं पदै के भोतर से क सकी, कहा । कितु सत्रका उत्तर वैद्यराज ने याह दिया--““घबराने की कोई बात नहीं है | इेश्वर को: ६था से सब ठीक हो जायगा । लीजिए यह ओषधि में दिए जाता हूँ, आप लोग इसे बराबर बरफ़ के पानी में घिस-घिसकर दिए जायें ।” इतना कहकर उन्होने अपनी फोस ली और चलते हुए । उन्हे परवाह ही किस बात की थी? इन्दं तो केवल कफ़न से मतलब, चाहे मुर्दों बिहिश्त मे जाय था दोज़ख मे ।




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