कर्म मार्ग | Kram Marg
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
336
श्रेणी :
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दुर्गा विनायक प्रसाद - Durga Vinayak Prasad
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मौलाना नज़ीर अहमद - Maulana Nazir Ahamad
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला परिच्छेद ७
गई । लोग बहुत घचराए । सवेरा द्येते.दयोते उनको दशा एर-
दम विगड़ गदे, यद्यं तक कि श्राशा भी जाती रही |
एक आदसी उसी समय पड़ोसी वैद्यगज के पास दौड़ा।
वैद्यनी भी संयोग-वश पूरे महापुरुष थे। न-जाने इन्हे किस
गुरु ने शिक्षा दी थी । हैज्े का नाम झुनते ही उनके होश उड़
गए | डर के मारे यह हाल हुआ कि काटो त्तो बदन मे खन
नही । परंतु करत क्या १ इन लोगो फे घर से पहले का कुछ
ऐसा सबंध चला आता था कि बेचारे नही भी न कर सके।
अत में जाना ही पड़ा | जांकर कुछ छूमंतर करके चले आए,
मानो कोई पड़ोस की विधि पूरा करने आए थे। रोगी मे तो
वोलने ओर बातचीत करने की भी शक्ति न थी । एक ही
'पहर की बोमारो में खाट से लग गए। खि्याँ जो छुं पदै के
भोतर से क सकी, कहा । कितु सत्रका उत्तर वैद्यराज ने याह
दिया--““घबराने की कोई बात नहीं है | इेश्वर को: ६था से
सब ठीक हो जायगा । लीजिए यह ओषधि में दिए जाता
हूँ, आप लोग इसे बराबर बरफ़ के पानी में घिस-घिसकर
दिए जायें ।” इतना कहकर उन्होने अपनी फोस ली और
चलते हुए । उन्हे परवाह ही किस बात की थी? इन्दं तो
केवल कफ़न से मतलब, चाहे मुर्दों बिहिश्त मे जाय था
दोज़ख मे ।
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